श्योपुर (मप्र): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि सात दशक पहले विलुप्त होने के बाद देश में चीतों के पुनर्वास के लिए दशकों से कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए। भारत में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के तहत श्योपुर जिले के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में नामीबिया से लाए गए चीतों को छोड़ने के लिए आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, ‘‘ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का भी धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत में 1947 में तीन चीते जंगल में बचे थे, जिनका दुर्भाग्य से शिकार किया गया था।
मोदी ने कहा कि मानवता के सामने ऐसे अवसर बहुम कम आते हैं जब समय का चक्र हमें अतीत को सुधार कर नये भविष्य के निर्माण का मौका देते हैं, आज सौभाग्य से हमारे सामने एक ऐसा ही क्षण है। उन्होंने कहा कि दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है; आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं और मैं ये भी कहूंगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है।
मोदी ने कहा कि ये बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है; विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं।उन्होंने कहा कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहां का घास के मैदान की पारिस्थितिकी सृदृढ़ होगी और जैव विविधता और बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है, हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है। मोदी ने कहा कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा। उन्होंने कहा कि आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं; कुनो राष्ट्रीय उद्यान को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा।
उन्होंने कहा कि प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी, भारत के लिए ये केवल निरंतरता (सस्टेनेबिलिटी) और सुरक्षा के विषय नहीं हैं बल्कि हमारे लिए ये हमारी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता का भी आधार हैं। मोदी ने कहा कि आज 21वीं सदी का भारत, पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है।
उन्होंने कहा कि बाघों की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था, उसे समय से पहले हासिल किया है, असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहा कि हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30,000 से ज्यादा हो गई है।
मोदी ने कहा कि हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है और आज गुजरात, देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है। उन्होंने कहा कि इसके पीछे दशकों की मेहनत, अनुसंधान आधारित नीतियां और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है।