पहाड़ी की ढलान पर 15वीं शताब्दी की चट्टानों पर बनी अद्भुत नक्काशीदार कलाकृतियां…

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देवतामुरा: त्रिपुरा में देवतामुरा एक ऐसा सुंदर स्थान है जिसका वर्णन कम ही मिलता है लेकिन यहां गोमती नदी के किनारे एक पहाड़ी की ढलान पर 15वीं शताब्दी की चट्टानों पर बनी अद्भुत नक्काशीदार कलाकृतियां राज्य सरकार की पहल के बाद अब पर्यटकों के स्वागत के लिए तैयार हैं।

नक्काशी में कालाझारी पहाड़ियों पर शिव, गणेश, कार्तिकेय, महिषासुर र्मिदनी और दुर्गा आदि ंिहदू देवी-देवताओं की 37 कलाकृतियां बनी हुई हैं। हालांकि, यह फिलहाल ज्ञात नहीं है कि जमातिया और रियांग जनजातियों के निवास वाले इस सुदूर स्थान पर देवी-देवताओं की कलाकृतियां किसने गढ़ी थीं।

राज्य की राजधानी अगरतला से 75 किलोमीटर दूर चाबीमुरा के नाम से भी प्रसिद्ध यह स्थान दशकों पुराने उग्रवाद, सड़कों और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में गुमनामी में खो गया था। राज्य के पर्यटन मंत्री प्रणजीत ंिसघा रॉय ने कहा कि देवतामुरा में पुरातात्विक स्थल पर पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के मकसद से राज्य के पर्यटन ढांचे को विकसित किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘पर्यटन विभिन्न संस्कृतियों को जोड़ता है और लोगों के बीच अच्छे संबंधों को विकसित करता है। हम इस क्षेत्र को अधिक महत्व दे रहे हैं और पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार कर रहे हैं।’’ मंत्री ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के बाद राज्य में पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

ंिसघा रॉय ने कहा कि गोमती जिले के देवतामुरा से उप-मंडलीय शहर अमरपुर के बीच 12 किलोमीटर के पूरे खंड को हाल ही में चौड़ा किया गया था। इसके अलावा, एक पर्यटक लॉज का निर्माण किया गया था और अधिक पर्यटकों को आर्किषत करने के लिए नौका विहार सुविधा शुरू की गई थी।

उन्होंने कहा कि पर्यटक अपने वाहन के जरिए गोमती नदी के तट तक पहुंच सकते हैं और फिर बाकी की यात्रा नाव से कर सकते हैं।
चट्टानों पर मूर्तिकला संबंधी अपने लेख के लिए नक्काशी का अध्ययन करने वाले इतिहासकार जहार आचार्य लिखते हैं, ‘‘उपलब्ध साक्ष्य दर्शाते हैं कि इन कलाकृतियों को 15वीं शताब्दी में मुगलों के हमले के दौरान उक्त क्षेत्र में छिपे कुछ सैनिकों ने बनाया था।’’

हालांकि, इन कलाकृतियों का अध्ययन करने वाले लेखक पन्ना लाल रॉय ने आचार्य के तर्क का खंडन करते हुए कहा, ‘‘उनकी बात का समर्थन करने के लिए कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है और रचनाकारों को खोजने के लिए अधिक शोध की आवश्यकता है।’’ त्रिपुरा के ऐतिहासिक वृत्तांत ‘‘राजमाला’’ में यह उल्लेख है कि माणिक्य राजाओं के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाने वाले स्थानीय रियांग जनजातियों ने इस स्थान का नाम देवतामुरा रखा था।

रॉय ने कहा कि जनजाति बाद में मांकिया राजाओं के प्रति वफादार हो गईं। त्रिपुरा में उग्रवाद पर ‘‘आई विटनेस’’ शीर्षक से किताब लिखने वाले मानस पॉल का कहना है कि तीन दशकों के विद्रोह के दौरान देवतामुरा 2004 तक पूरी तरह से दुर्गम था, क्योंकि यहां नेशनल लिबरेशन फ्रंट आॅफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) का प्रभाव था।

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