नयी दिल्ली: राज्यसभा में विपक्षी दलों के मणिपुर मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान की मांग पर अडिग रहने के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को स्पष्ट कहा कि वह प्रधानमंत्री को सदन में आने का निर्देश नहीं दे सकते। संसद का मानसून सत्र के शुरू होने के बाद से ही विपक्षी सदस्य मणिपुर के मुद्दे पर नियम 267 के तहत चर्चा और प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहे हैं।
सुबह, उच्च सदन की बैठक शुरू होने पर सभापति धनखड़ ने कहा कि उन्हें मणिपुर की स्थिति पर चर्चा के लिए नियम 267 के तहत 58 नोटिस मिले हैं। उन्होंने कहा कि ये सभी नोटिस मणिपुर की स्थिति से जुड़े हैं। उन्होंने इस नोटिस को अस्वीकार करते हुए कहा कि मणिपुर मुद्दे पर चर्चा के लिए उन्होंने पहले ही व्यवस्था दी थी और सरकार भी चर्चा के लिए तैयार थी। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा को सूचीबद्ध भी किया गया लेकिन दुर्भाग्य से चर्चा नहीं हो सकी।
इसके बाद उन्होंने नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने का मौका दिया। खरगे ने कहा कि उन्होंने नियम 267 के तहत एक नोटिस दिया है और उसमें आठ ंिबदुओं के जरिए स्पष्ट किया है कि क्यों मणिपुर मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए और क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सदन में आकर बयान देना चाहिए।
सभापति ने कहा कि उन्होंने नेता प्रतिपक्ष को अपनी बात कहने का मौका दिया लेकिन उन्होंने उसका सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया। इसके बाद सदन में विपक्षी सदस्यों का हंगामा शुरू हो गया। वे प्रधानमंत्री से सदन में आने और उनके बयान की मांग कर रहे थे।
धनखड़ ने कहा कि आसन यहां से प्रधानमंत्री को कोई निर्देश नहीं दे सकता और कभी भी आसन ने प्रधानमंत्री को सदन में आने का निर्देश नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि अगर वह ऐसा करते हैं तो यह संविधान के तहत शपथ का उल्लंघन होगा। धनखड़ ने कहा, “अगर प्रधानमंत्री आना चाहते हैं, तो हर किसी की तरह, यह उनका विशेषाधिकार है। लेकिन इस आसन से इस तरह का कोई निर्देश कभी नहीं जारी किया गया है और कभी नहीं जारी किया जाएगा।”
उन्होंने विपक्ष से कहा, “… आपके पक्ष में कई कानूनी विशेषज्ञ हैं। उनसे राय लें। वे आपकी मदद करेंगे, संविधान के तहत, मैं ऐसा निर्देश नहीं दे सकता।’’ विपक्षी सदस्यों के हंगामे के बीच ही सभापति ने शून्यकाल शुरू कराया और इसी दौरान विपक्षी सदस्यों ने सदन से बहिर्गमन किया। इस पर धनखड़ ने टिप्पणी की कि ये सदस्य सदन से बाहर नहीं जा रहे हैं, बल्कि “संवैधानिक जिम्मेदारी” और “लोगों के प्रति अपने कर्तव्य” से हट रहे हैं।