Chhath Puja 2023: महापर्व खरना का दूसरा दिन आज, जानें क्या है इसका महत्व…

0
275

नई दिल्ली: लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर से नहाय खाय के साथ हो चुकी है. आज छठ का दूसरा दिन है. इस दिन को खरना के नाम से संबोधित किया जाता है. चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व का हर एक दिन बहुत ही महत्व रखता है. उत्तर भारत के कई राज्यों में खासकर बिहार और झारखंड में छठ को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. आज यानी खरना छठ के दूसरा दिन पूजा कैसे करें, शुभ मुर्हूत क्या है? आइए जानते हैं.

खरना की तिथि

छठ पर्व का दूसरा दिन खरना 18 नवंबर दिन शनिवार शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन है. आज 18 नवंबर सूर्योदय सुबह 6 बजकर 45 मिनट पर हुआ. वहीं, सूर्यास्त का समय शाम 5 बजकर 58 मिनट है.

क्या है खरना का महत्व?

खरना से तात्पर्य है शुद्धीकरण. इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है. छठ पर्व के खरना के दिन महिलाएं व्रत रखती है. इस दिन गुड़ की खीर मिट्टी के चूल्हे पर तैयार की जाती हैं. जैसे ही प्रसाद तैयार होता है तो छठी मैया का भोग लगाया जाता है. इसके बाद व्रती महिलाएं प्रसाद को ग्रहण करती हैं.

और फिर सभी को प्रसाद वितरित किया जाता है. प्रसाद खाने के बाद से महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और इस व्रत को अगले दिन सूर्यास्त के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर तोड़ती हैं. महिलाएं लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यता है कि छठ पूजा का व्रत आरोग्य, समृद्धि और संतान के लिए रखा जाता है.

क्या है छठ के दूसरे दिन का नियम

छठ महापर्व के दूसरे यानी खरना के दिन प्रात: काल उठकर स्नान ध्यान करके नए और साफ सुथरे वस्त्र धारण करें. छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय तांबे के बर्तन का इस्तेमाल करें. सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय महिलाओं को हमेशा तांबे के लोटे का ही इस्तेमाल करना चाहिए.

छठ पर्व के दूसरे दिन प्रसाद तैयार किया जाता है. इस दिन गुण की खीर बनाई जाती है. इस खीर को मिट्टी के चूल्हे में पकाया जाता है.छठ के दूसरे दिन साफ सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए. गंदगी से देवी षष्ठी का निवास नहीं होता.छठ पर्व के दिन प्याज और लहसुन का सेवन न करें. न ही इसका इस्तेमाल खाना बनाने में करें.मान्यता है कि छठ पर्व में व्रत रखने वाली महिलाओं को पलंग या फिर चारपाई में नहीं सोना चाहिए. उन्हें जमीन पर ही सोना चाहिए.

कर्ण ने शुरू की थी सूर्यदेव की पूजा

धार्मिक कथाओं की मानें तो सूर्यदेव को अर्घ्य देना महाभारत के पराक्रमी योद्धा कर्ण ने की थी. उन्होंने ही सूर्य देव की पूजा करना शुरू किया था. वो कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया करते थे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here