भोपाल : अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई। तकनीकी युग में मातृभाषा का अस्तित्व और चुनौतियां विषय पर हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के मंत्री संचालक कैलाशचंद्र पंत शामिल हुए।
पंत ने कहा कि आज यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भाषाओं के विकास में तकनीक हावी न हों जाए और हम तकनीक के गुलाम न हो, बल्कि तकनीक के स्वामी हों। उपभोक्तावादी संस्कृति संघर्ष बढ़ा देती है। आज यह जरूरी है कि हम अपनी ज्ञान परम्परा और समृद्ध संस्कृति को महत्व दें, तभी प्रकृति से भी जुड़ सकेंगे।
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पंत ने हिंदी और भारतीय भाषाओं के परस्पर सम्पर्क पर विस्तृत प्रकाश डाला। यह संगोष्ठी राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित की गई। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, विद्यार्थी और हिंदी प्रेमी उपस्थित थे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक अशोक कड़ेल ने कहा कि भाषायी सद्भावना आवश्यक है। नई शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार और उपयोग की बात कही गई है। मध्यप्रदेश में हिंदी ग्रंथ अकादमी ने भारतीय ज्ञान परम्परा से संबंधित अनेक प्रकाशन किए हैं। इसके साथ ही अनुवाद को भी महत्व दिया जा रहा है।
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विश्वविद्यालय के कुलगुरू प्रोफेसर खेमसिंह डहेरिया ने कहा कि शीघ्र ही विभिन्न भाषाओं का संयुक्त कोष प्रकाशित किया जाएगा। मध्यप्रदेश में चिकित्सा और अभियांत्रिकी पाठ्यक्रमों के हिंदी में प्रारंभ होने से हिंदी का प्रचार बढ़ा है। विभिन्न भाषाओं की श्रेष्ठ पुस्तकों का अन्य भाषाओं में अनुवाद भी जरूरी है। अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस का आयोजन यूनेस्को द्वारा की गई पहल है।
सिंधी भाषा के प्रतिनिधि के रूप में अशोक मनवानी और कविता इसरानी ने हिस्सा लिया। इसरानी ने सिंधी भाषा की उत्पत्ति, विकास, विभिन्न लिपियों के उपयोग और विभाजन के कारण भाषा संरक्षण में उत्पन्न समस्याओं पर रोशनी डाली। मराठी भाषा के प्रतिनिधि भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी अनिल निगुडकर और विश्वविद्यालय के कुल सचिव शैलेन्द्र जैन ने भी विचार व्यक्त किए।