ड्रग मामलों में मेडिकल छात्रों, चिकित्सकों की गिरफ्तारी से ‘ब्रांड मंगलुरु’ की छवि को नुकसान

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मंगलुरु: दक्षिण भारत का एक प्रमुख शैक्षणिक केंद्र मेंगलुरु हाल ही में गलत कारणों से खबरों में रहा है, जिसमें कुछ चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों को नशीले पदार्थों के सेवन के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पांच विश्वविद्यालय, सात मेडिकल कॉलेज और एक दर्जन से अधिक इंजीनियंिरग कॉलेज तथा कला और विज्ञान के कई शैक्षणिक संस्थान वाले इस शहर में चिकित्सकों और मेडिकल के कुछ छात्रों द्वारा नशीले पदार्थों का इस्तेमाल और उसकी तस्करी किसे जाने के आरोप के बाद कुछ चिकित्सकों सहित कुल 22 लोगों को हिरासत में लिया गया।

वहीं, मीडिया द्वारा लगातार इस मामले को उठाए जाने के बाद शैक्षणिक संस्थानों के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध इस शहर की छवि को काफी नुकसान पहुंच रहा है। इस शहर में देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पड़ोसी राज्य केरल से आकर छात्र अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। शहर और उपनगरों में देश के अलग-अलग हिस्सों से लगभग 50,000 छात्र यहां रहते हैं।

गौरतलब है कि 10 जनवरी को चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों को गांजा का सेवन करने और उसकी तस्करी के आरोप में पुलिस ने दो चिकित्सकों सहित नौ लोगों को गिरफ्तार किया था। वहीं, 10 दिन बाद दो चिकित्सकों सहित नौ अन्य लोगों को नशीले पदार्थ का सेवन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इन दोनों मामलों में मेडिकल के चार छात्रों की गिरफ्तारी हुई थी।

चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों के ड्रग तस्कर बनने की खबर सुनकर उनके माता-पिता सकते में थे और उन्हें भरोसा ही नहीं हो पा रहा था। एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि तस्करी उनके कृत्य का वर्णन करने के लिए सटीक शब्द नहीं हो सकता है, लेकिन प्रारंभिक जांच से यह स्पष्ट हो गया है कि उनके बीच नशीले पदार्थों का आदान-प्रदान हो रहा था।

नेशनल एकेडमी आॅफ कस्टम्स, इनडायरेक्ट टैक्सेज एंड नारकोटिक्स एंड मल्टी-डिसिप्लिनरी स्कूल आॅफ इकोनॉमिक इंटेलिजेंस के पूर्व महानिदेशक डॉ जी श्रीकुमार मेनन ने कहा कि हालांकि ड्रग की समस्या की सीमा का आकलन करने के लिए ज्यादा अध्ययन उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन पुलिस के मुताबिक छात्रों के पास नशीला पदार्थ बरामद होने से उनके बीच नशे की एक श्रृंखला काफी हद तक नजर आ रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि छात्र समुदाय को नशीले पदार्थों के सेवन के प्रभावों के बारे में शिक्षा देना बहुत जरूरी है तथा यह शिक्षा, आत्म-देखभाल और तनाव से मुकाबला करने वाली कक्षाओं के साथ मिलकर छात्रों के लिए मददगार साबित हो सकती है और परिसर में किसी भी नशीली दवाओं के दुरुपयोग को कम कर सकती है।

वहीं, मंगलुरु बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मनोज राजीव ने चिकित्सकों और मेडिकल छात्रों द्वारा मादक पदार्थों के इस्तेमाल से जुड़े मामले की पुलिस जांच के तरीके पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि नशीले पदार्थों की तस्करी के खिलाफ पुलिस की कड़ी कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों के मामले की निष्पक्ष तरीके से जांच नहीं की जा रही है।

उन्होंने कहा कि 1985 के स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम की धारा 64ए के अनुसार, जिन लोगों ने मादक पदार्थों का सेवन किया है, उन्हें कानूनी कार्रवाई से छूट है और अगर वे पुनर्वास केंद्रों में जाने के इच्छुक हैं तो उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने हैरानी जताई कि पुलिस विभाग ने इस दिशा में कदम क्यों नहीं उठाया। उन्होंने आरोपियों की तस्वीरें मीडिया को उपलब्ध कराने की पुलिस कार्रवाई पर भी नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि इस तरह की हरकतों से न केवल आरोपियों के परिवार प्रभावित होते हैं, बल्कि मेडिकल शिक्षण संस्थानों की छवि को भी नुकसान पहुंचता है।

प्रोफेसर और फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. महाबलेश शेट्टी ने भी कहा कि स्क्रीन टेस्ट के ‘पॉजिटिव’ परिणाम से दवा के सेवन की पुष्टि नहीं होती है। उन्होंने कहा कि नमूनों को 24 घंटे के भीतर एफएसएल और सीएफएल टेस्ट के लिए भेजकर पुष्टि करनी होती है, क्योंकि कभी-कभी निष्क्रिय धूम्रपान के कारण भी जांच का परिणाम ‘पॉजिटिव’ आता है।

इस बीच, कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज (केएमसी), मंगलुरु ने उन दो चिकित्सकों की सेवाएं समाप्त कर दी है, जिन्हें 10 जनवरी को नशीली दवाओं की तस्करी और इस्तेमाल के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल पुलिस आयुक्त ने कहा कि वे नशीले पदार्थ के स्रोत और उसके वितरण के तौर-तरीकों की जांच कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा मामले के मुख्य आरोपी के संपर्कों की भी जांच की जा रही है।

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