नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में जीत दर्ज करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) गदगद है और उसके मुख्यालय में जश्न चल रहा है। वहीँ,जो दिल्ली बीते ढाई दशक से BJP को मुंह चिढ़ा रही थी, वहां आखिरकार कमल खिला और पार्टी राजधानी में दूसरी बार सरकार बनाने जा रही है। 90 के दशक में सुषमा स्वराज ने भाजपा के लिए दिल्ली जीती थी, इसके बाद से यहां पहले कांग्रेस और फिर AAP ने भाजपा को सत्ता से दूर बनाए रखा।
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पर अब, जेपी नड्डा, अमित शाह और नरेंद्र मोदी की तिकड़ी ने AAP का वो तिलिस्म भी तोड़ दिया, जिसके लिए पार्टी सुप्रीमो कहते थे “मोदी जी इस जन्म में तो आप हमें दिल्ली में हरा नहीं पाएंगे।” ये कहने वाले अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सीट हार गए हैं। इससे एक बात और स्पष्ट हुई है कि दिल्ली की जनता ने फ्री बिजली, फ्री पानी जैसे वादों को नकार दिया है और ठोस विकास के मुद्दों पर भरोसा जताया है, जैसे कूड़े का ढेर बन रही दिल्ली को इससे निजात दिलाना, यमुना नदी को साफ करना, वायु प्रदूषण कम करने के लिए ठोस कदम उठाना, पेयजल के लिए टैंकरों पर निर्भर दिल्ली की जनता को घर में नल से जल की सुविधा देना आदि।
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अब देखना ये है कि भाजपा सरकार बनाने के बाद इन समस्याओं को हल करने में कितन समय लगाती है? क्योंकि केजरीवाल द्वारा की गई वादाखिलाफी के कारण ही जनता ने भाजपा को वोट दिया है और अगर भगवा दल भी उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा, तो 5 साल बाद फिर यही जानत हिसाब करेगी। ये चुनाव कांग्रेस के लिए भी एक सबक है, कि अब सिर्फ गांधी परिवार के नाम पर वोट नहीं पड़ेगा, पार्टी कार्यकर्ताओं को जमीन पर उतरकर काम करना होगा।
AAP के खिलाफ चली लहर के बावजूद कांग्रेस का एक भी सीट न जीत पाना इसी तरफ इशारा कर रहा है कि पार्टी अब “हम ही राजा हैं” के दिवास्वप्न से बाहर आए और जनता से जुड़ने की कोशिश करे, उनकी जरूरतों को समझे। वरना वो दिन दूर नहीं, जब देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली पार्टी, एक या दो राज्यों की पार्टी बनकर रह जाएगी।