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Badal Saroj : सीपीएम की पार्टी कांग्रेस को लेकर सन्नाटा!! : एकजुट वाम से इतना डर क्यूँ लगता है भाई?

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(कन्नूर, केरल से बादल सरोज)

Badal Saroj : देश में संगठित, राजनीतिक वाम की अगुआ पार्टी सीपीआई (एम) का राष्ट्रीय महाधिवेशन – 23 वीं पार्टी कांग्रेस – आज 6 अप्रैल सुबह 10 बजे केरल में मलाबार के जनसंघर्षों के परम्परागत केंद्र कन्नूरhttps://www.google.com/ में शुरू हुआ है। वामपंथ भारतीय राजनीति की एक महत्वपूर्ण, विशिष्ट और प्रमुख धारा है। नीतिगत सवालों पर इसकी राय तथा देश, समाज और जन की ज्यादातर प्रमुख समस्याओं के निदान और समाधान को लेकर इसकी समझदारी दूसरी राजनीतिक धाराओं से गुणात्मक और निर्णायक रूप से भिन्न तथा अलहदा है।

इस लिहाज से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का यह महाधिवेशन (पार्टी कांग्रेस) सहज ही सभी की दिलचस्पी का विषय है — इसे समाचार माध्यमों में चर्चा में होना चाहिए। पत्रकारिता की भाषा में कहें, तो सहमति-असहमति से इतर और परे इसकी एक न्यूज वैल्यू भी है : इसलिए कि यहाँ अगले तीन वर्षों के लिए देश की राजनीति में खासतौर पर माकपा और आमतौर पर वाम की भूमिका निर्धारित की जाने वाली है।(Badal Saroj) मगर कथित मुख्यधारा के दिखाऊ-पढ़ाऊ दोनों तरह के मीडिया इस उल्लेखनीय राजनीतिक घटना विकास पर मुसक्का मारकर बैठे हुए हैं। न वाम के वैकल्पिक नजरिये पर कोई चर्चा है, ना ही एक राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त पार्टी के इस सम्मेलन के बारे में ही कोई विश्लेषण है। हद तो यह है कि ज्यादातर में सामान्य खबर तक गायब है।

Badal Saroj : वामपंथ सुर्रा 

सन्नाटे के हद तक की यह खामोशी कई कारणों से अजीब है। इसलिए भी कि माकपा, तगड़ी हो या दुबली, हमेशा ही इस मीडिया की सबसे चहेती पंचिंग बैग रही है। पिछले अनेक दशकों से इसी मीडिया के लिए माकपा और वामपंथ सुर्रा छोड़ने और कयास लगाने का एक पसंदीदा निशाना रही है। संभवतः जितनी बार इस पार्टी ने खुद को बनाने और बढ़ाने की कोशिश नहीं की होगी, उससे ज्यादा बार इन मीडिया मुगलों ने उसे तोड़ा और बिखेरा है।

अंदरखाने के घट-अनघट के बारे में जितनी औचक रहस्यमयी कल्पनाये देवकीनंदन खत्री से लेकर अगाथा क्रिस्टी तक ने भी नहीं की होंगी, उससे ज्यादा प्लॉट इसने माकपा के आतंरिक द्वन्द के बारे में सोचे, विचारे और बुने हैं। (Badal Saroj) काल्पनिकता की ऊंचाईयों के आरोहण और मतभेदों के अनुसंधानों की जितनी कसरतें सीपीएम और वाम को लेकर की गयी हैं, उन्हें पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में “खबरों में रहस्य रोमांच कैसे भरें” के विषय के रूप में सहज ही शामिल किया जा सकता है।Badal Saroj : सीपीएम की पार्टी कांग्रेस को लेकर सन्नाटा!! : एकजुट वाम से इतना डर क्यूँ लगता है भाई?

पुरानी बातें छोड़ दें, तो 1996 के बाद से सीपीएम की कुल 7 पार्टी कांग्रेस हुयी हैं। आज से कन्नूर में शुरू हुयी आठवीं है। इन सबको लेकर कथित मुख्यधारा मीडिया पूरे गाजे-बाजे के साथ सक्रिय रहा। उसने एक सुर में इस पार्टी में फूट, नेताओं की रार, बिखराव, विभाजन और तकरार की रोमांचकारी गल्प कथाएं गढ़ीं, ढोल धमाकों के साथ इसके मर्सिये पढ़े।

Badal Saroj : तलवारबाजी

कभी क्षेत्रीय आधार पर केरल-बंगाल, आंध्रा-तमिलनाडु की लाइन के बीच टेक्टोनिक दरारों के हौलनाक ग्राफिक दिखाए गए, तो कभी सुरजीत-नम्बूदिरीपाद तो कभी मौजूदा नेतृत्व के एक दो नेताओं को चुनकर उनके बीच तलवारबाजी के एकदम असली-से दिखने वाले दृश्य कथानक रच-रचकर कालिदास से लेकर शेक्सपीयर तक के नाट्य लेखन से मुकाबला करने का भरम पाला। यह अलग बात है कि सारी कोशिशों और समस्त कलम घिस्सुओं को काम पर लगाने के बाद भी शिल्प और कथ्य में वे दादा कोंडके तक भी नहीं पहुँच पाए।

ऐसा नहीं कि उन्हें नहीं पता था कि परिस्थितियों के आंकलन और उसके अनुकूल कार्यनीति तय करने को लेकर यह पार्टी अपने भीतर जितनी शिद्दत के साथ जितनी तीखी बहस करती है, उतनी ही जिद और एकता के साथ बहस के बाद मंजूर की गयी राजनीतिक लाइन पर अमल करती है। उन्हें पता था। मगर इससे ज्यादा उन्हें यह पता था कि सीपीएम और वाम की वैचारिक-सांगठनिक एकता का सन्देश नीचे तक जाना उनके राज के लिए कितना खतरनाक हो सकता है। (Badal Saroj) उन्हें पता है कि इस बार परिस्थितियों के आँकलन, संभावनाओं के मूल्यांकन और आगे के रास्ते पर बढ़ने के मामलों पर सीपीएम में किसी भी तरह की मतभिन्नता नहीं है – कोई दो राय नहीं है, कहीं कुछ इधर-उधर नहीं है। ठीक यही वजह है कि इस बार माकपा का महाधिवेशन (पार्टी कांग्रेस) उनके लिए खबर नहीं है।

अक्सर बड़ी पूँजी की अँगुलियों में कसी डोरी से नियंत्रित और इन दिनों देसी-विदेशी कारपोरेट से सीधे-सीधे संचालित मीडिया यह भूल जाता है कि जन उभार के तूफ़ान से आँख मूँद लेने के उसके शुतुरमुर्गी स्वांग से लोग निराश होकर घरों में बैठने वाले नहीं हैं। पूँजी के तहखाने में क़ैद मुर्गे को बांग देने से रोक देने से सूरज का उगना रुकेगा नहीं — सुबह की आमद टलेगी नहीं। पिछले चार वर्षों में यही हुआ है ; शुतुरमुर्गी अनदेखी के रहते और उसके विरोध के बावजूद हिन्दुस्तान के मेहनतकशों के संघर्षों ने उम्मीदों का प्रभात लाया है। आगे भी ऐसा ही होना तय है।

Badal Saroj : माकपा की 23 वीं पार्टी कांग्रेस 

आज से शुरू होकर 10 अप्रैल तक 5 दिन तक चलने वाली माकपा की 23 वीं पार्टी कांग्रेस भारत की मेहनतकश जनता के उत्साह को नयी ऊर्जा देने, देश की एकता, सौहार्द्र तथा सम्प्रभुता बचाने वाली शक्तियों की एकता को विराट बनाने, इन सबकी धुरी के रूप में खुद अपनी और वाम की ताकत तेजी से बढ़ाने के लिए क्या करेगी, कैसे करेगी, (Badal Saroj) इसके बारे में अगली कुछ टिप्पणियों में जायजा लेंगे। फिलहाल तो ऐसी संभावनाओं के बारे में सोच-सोच कर ही देश के शासकों और उनके पोषकों का जायका खराब हुआ पड़ा है!! यह टिप्पणी उनसे गेट वैल सून कहने के लिए, उनसे हमदर्दी जताने के लिए नहीं है। उन्हें आश्वस्त करने के लिए है कि भले वे आज सत्य की गतिविधियों पर पहरे लगा लें, अंधियारे उम्र दराज न हुए हैं, न होंगे।

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