BIG NEWS: भाजपा की आंध्र प्रदेश इकाई की नजर कैबिनेट मंत्री पद पर…

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अमरावती: हाल के आंध्र प्रदेश विधानसभा और लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित प्रदेश भाजपा इकाई केंद्र में कम से कम एक कैबिनेट मंत्रिपद पद की मांग कर रही है। ऐसी खबर है कि राज्य से मंत्रिमंडल में पर्याप्त प्रतिनिधित्व होगा।

भाजपा सूत्रों ने बताया कि प्रदेश इकाई ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव शिव प्रकाश के माध्यम से शीर्ष नेतृत्व को संदेश भेजकर अनुरोध किया है कि यदि संभव हो तो राज्य से पार्टी के कम से कम एक लोकसभा सदस्य को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाए।

भाजपा सूत्रों ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “आंध्र प्रदेश में पार्टी का विस्तार करने और जनता को यह संदेश देने का यह उपयुक्त समय है कि भाजपा राज्य को लेकर गंभीर है। पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व को एक अनुरोध भेजा गया है।”

उन्होंने बताया कि पहली पसंद प्रदेश भाजपा अध्यक्ष डी पुरंदेश्वरी होंगी, जिन्होंने राजमहेंद्रवरम लोकसभा क्षेत्र से लगभग 2.40 लाख मतों के अंतर से जीत हासिल की है तथा अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी वाईएसआर कांग्रेस के जी श्रीनिवास को हराया है।

भाजपा ने राज्य में प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए हाल के चुनाव में अपना वोट शेयर 11.28 प्रतिशत तक बढ़ाया है तथा तीन लोकसभा और आठ विधानसभा सीट जीती हैं, जबकि 2019 में यह आंकड़ा एक प्रतिशत से भी कम था।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे के तहत तेलुगूदेशम पार्टी (तेदेपा) ने 144 विधानसभा और 17 लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ा, जबकि भाजपा ने आंध्र प्रदेश में छह लोकसभा और 10 विधानसभा सीट पर उम्मीदवार खड़े किए। जनसेना ने दो लोकसभा और 21 विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ा।

तेदेपा ने विधानसभा चुनाव में 135 सीट जीतीं। इसके सहयोगी दल भाजपा और जनसेना को क्रमश? 8 और 21 सीट मिलीं। लोकसभा चुनाव में तेदेपा ने 16 सीट, भाजपा ने तीन और जनसेना ने दो सीट जीतीं। वर्ष 2014 से 2019 के बीच भाजपा के दो लोकसभा सदस्य थे – कंभमपति हरि बाबू (विशाखापट्टनम) और गोकाराजू गंगा सुरेश (नरसापुरम) – और 2019-24 के दौरान कोई भी नहीं।

पार्टी को यह भी उम्मीद है कि विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हारने वाली वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता भाजपा में शामिल हो सकते हैं, क्योंकि वे तेदेपा के साथ नहीं जा सकते। हाल ही में संपन्न विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान, पार्टी ने कई नेताओं को मैदान में उतारा, जो पार्टी में शामिल हुए थे, जिससे पुराने नेताओं में नाराजगी उत्पन्न हुई।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, नये लोगों को पार्टी का टिकट देकर, भाजपा अन्य दलों के असंतुष्ट नेताओं को यह संदेश या संकेत देने की कोशिश कर रही थी कि वह दलबदलुओं को चुनाव लड़ने के लिए उदारतापूर्वक सीट देगी।

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