अल्प समय में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दूसरी बार छत्तीसगढ़ दौरे पर आने की खबरें, भारतीय जनता पार्टी के उन नेताओं को डरा रही है्ं, जो पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच फ्यूज बल्ब के नाम से अलोकप्रिय हो चुके हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पहले कोरबा और अब 15 से 18 मार्च के बीच प्रस्तावित बस्तर प्रवास को आगामी विधानसभा चुनाव के नजरिए से काफी अहम् माना जा रहा है। (हालांकि अभी इस प्रवास की अधिकृत पुष्टि होनी है) बहरहाल, उनकी प्रस्तावित / संभावित बस्तर यात्रा को नक्सली और शहरी-कस्बाई क्षेत्रों में बैठे नक्सल समर्थक भी काफी गंभीरता से ले रहे हैं।
इतने कम समय में उनके दो-दो बार छत्तीसगढ़ आने के पीछे एक गंभीर संदेश छुपा हुआ है। और वह संदेश यह है कि…पिछले विधानसभा चुनाव में “दूध की जली” भाजपा इस विधानसभा चुनाव में “छाछ” को भी फूंक-फूंककर पीना चाहेगी। केंद्रीय गृह मंत्री के इस प्रस्तावित बस्तर दौरे से जहां उस क्षेत्र के भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा. वही पार्टी के उन पदाधिकारियों का चिंतित होना स्वाभाविक है जिनकी विदाई का इंतजार पार्टी के जमीनी कार्यकर्ता लंबे समय से कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर, प्रदेश के संगठन मंत्री अजय जामवाल और उनके सहयोगी नितिन नवीन अपने दौरों और कार्यक्रमों से छत्तीसगढ़ के भाजपा संगठन को जमकर मथ रहे हैं। छत्तीसगढ़ भाजपा की नब्ज पर उनकी उंगलियों ने अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। ओम माथुर जिस कद के नेता हैं।
उनसे ऐसा लगता नहीं है कि वे जनता और कार्यकर्ताओं के बीच अलोकप्रिय तथा पार्टी के लिए पूरी तरह अनुपयोगी साबित हो चुके पदाधिकारियों और नेताओं को किनारे लगाने में किसी तरह की कोई मुरव्वत करेंगे। यह साफ दिखाई दे रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का शीर्ष नेतृत्व पार्टी के लिए बोझ बन चुके ऐसे लोगों से पिंड छुड़ाना चाहता है। और उनका जमीनी कार्यकर्ता भी यही चाहता है। तब फिर ऐसे निरर्थक और नाकाबिल लोगों को किनारे करने जैसे पुण्य कार्य में अधिक देर क्यों लगनी चाहिए..? जाहिर है कि इसमें जितनी देर की जाएगी… इस बदलाव से भाजपा को होने वाला संभावित लाभ भी उतना ही कम होता चला जाएगा। यह बात ओपन सीक्रेट है कि केवल प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बदल दिए जाने से पार्टी संगठन के ना तो हालात बदले हैं और ना ही जनता के बीच पार्टी की घटती लोकप्रियता पर कोई विशेष ब्रेक लगा है। प्रदेश विधानसभा चुनाव को मात्र 8 माह बचे हुए हैं।
जबकि भाजपा का कार्यकर्ता अभी भी इस बात का इंतजार कर रहा है कि पार्टी में जिस बदलाव की बात कही जा रही है। उसकी झौंके, उनके अपने जिले में कब तक पहुंचेगे। यह ठीक है कि दूसरी पार्टियों की तुलना में भाजपा का अपना अलग तरह का कैडर है।अनुशासित फौज है। समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ता हैं। लेकिन इसका घमंड करने वाले वरिष्ठ नेताओं को यह याद रखना चाहिए कि इन सब के रहते हुए भी पार्टी की गत चुनाव में शर्मनाक दुर्गति हुई थी। हो सकता है भारतीय जनता पार्टी के अनुभवी और वरिष्ठ नेताओं ने छत्तीसगढ़ को लेकर कोई मास्टर प्लान तैयार किया हो।
लेकिन जब तक इस मास्टर प्लान को जमीन पर और जनता के बीच उतारने वाले कार्यकर्ता के भीतर जोश और मरजीवडापन लबालब नहीं होगा तब तक मौजूदा निराशा के दौर से उत्साह के शिखर तक पहुंचने की उम्मीदें नामुमकिन ही कहीं जाएंगी। अफसोस की बात यह है कि बीते छह माह से छत्तीसगढ़ में आने वाले भाजपा के सभी बड़े नेता अपने कार्यक्रमों में पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं को यह भाषण और उपदेश तो जमकर पिला रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी, छत्तीसगढ़ के अपने कार्यकर्ताओं से क्या चाहती है..? लेकिन अफसोस की बात यह है कि पार्टी के ये ही वरिष्ठ और अनुभवी नेता यह जानने की चिंता क्यों नहीं करते कि भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता इस समय पार्टी से क्या चाहता है..? और आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को यही जानना सबसे ज्यादा जरूरी है। वरना…?