अम्बिकापुर: भारत सम्मान अखबार के प्रधान संपादक कुमार जितेंद्र को 8 अप्रैल 2022 की रात को पुलिस ने लूट, हमला तथा फिरौती जैसे गंभीर धाराओं में अपराध पंजीबद्ध करके तत्काल गिरफ्तार कर लिया.
जब मामले की जानकारी मुझे जितेंद्र की पत्नी प्रिया ने दी तब थाने पहुँचकर मैंने एफआईआर की कॉपी देखी जिसमें ‘जितेन्द्र सोनी’ आत्मज नन्दू प्रसाद सोनी नामक व्यक्ति जो खुद को कैनविज सेल्स एंड मार्केटिंग कंपनी के फ्रेंचाइजी का मालिक होना बताता है उसकी शिकायत पर पुलिस ने उक्त अपराध पंजीबद्ध किया है.
रात को जब जितेंद्र की पत्नी प्रिया जायसवाल अपनी 6 साल की बच्ची के साथ थाने पहुंचकर जितेन्द्र से मिलने की मांग की तो प्रिया एवं उसकी छोटी सी बच्ची के सामने बकौल प्रत्यक्षदर्शी एक पुलिसकर्मी के द्वारा प्रिया से कहा गया कि “सुबह तक जिंदा बचेगा तो अपने पति से मिल लेना..” इसके बाद थाने में पत्रकारों एवं पुलिस के बीच तीखी बहस हुई.
जब गिरफ्तार व्यक्ति के मानवाधिकार की बात मेरे द्वारा पुलिस के आला अधिकारियों से कही गयी तब पुलिस अधीक्षक सरगुजा एवं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, नगर पुलिस अधीक्षक ने मुझसे धमकी भरे लहजे में बात किया, स्वयं एसपी ने किसी भी मानवाधिकारों एवं माननीय सर्वोच्च न्यायालय की गाईड लाइन को ना मानने संबंधित बातें मुझपर चिल्लाते हुए कहीं साथ ही जितेंद्र के परिजनों को ना मिलने देने की बात भी चीख-चीखकर कही, एसपी ने कहा कि “भारत सम्मान पुलिस को हरामखोर लिखता है…” और लगातार एक सड़क छाप व्यक्ति की भांति एसपी चिल्लाते रहे जिसे सभी पत्रकारों एवं प्रत्यक्षदर्शियों ने सुना…
काश ! की यही गुस्सा और क्रोध उन्हें अपराधियों के विरुद्ध आता तो जिले की कानून-व्यवस्था कुछ और ही होती उल्टे जितेंद्र की गिरफ्तारी का जश्न वे अपराधियों के गुटों से सम्मानित होकर मना रहे हैं उनकी पुलिस अपराधियों से गुलदस्ता लेकर गर्व से फ़ोटो खिंचा रही है.
बहरहाल अगले दिन माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने जितेंद्र को पेश किया गया तब उसने कोर्ट को बताया कि लुंड्रा थाना प्रभारी दिलबाग सिंह एवं स्वयं एसपी सरगुजा ने उसके साथ मारपीट की है उसके बाएं हाथ पर चोट के निशान थे एवं दाहिने कान से कम सुनाई दे रहा था.
पुलिस ने जो प्रेस विज्ञप्ति जारी किया है उसके अनुसार एक ही दिन में लगातार दो एफआईआर पुलिस ने जितेंद्र पर दर्ज किए हैं, पत्रकारों एवं हमारे सामने ही रात को पुलिस ने दूसरे शिकायतकर्ता को बुलाया और खुद आवेदन लिखवाकर अपराध क्रमांक 129/2022 कायम किया. स्पष्ट है कि पुलिस ने दुर्भावना से ऐसा किया है और सुनने में आ रहा है कि जितेंद्र पर अन्य फर्जी मामले भी पुलिस गढ़ने वाली है जिसका हम सब प्रतीक्षा कर रहे हैं जिससे कि पुलिस की दुर्भावना सबके सामने आ सके !
पूरी घटनाक्रम के बीच सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल किया जा रहा है जिसमें कुछ लोग आपस में बातचीत कर रहे हैं जिसमें से एक शख़्स की आवाज जितेंद्र से मिलती हुई है जो संभवतः अपने अखबार के फुल पेज में विज्ञापन की कीमत 30 हजार बता रहा है एवं विभिन्न मौकों पर विज्ञापन लगाने एवं 50 हजार रुपए एक साल में किश्तों से किसी से मिलने की बात कर रहा है. अब आप ही तय करिए कि अखबार संचालक विज्ञापन के बदले यदि पैसे लेता है तो क्या यह अपराध है? यदि हां तो फिर पुलिस के अनुसार सभी अखबारों के संचालक ब्लैकमेलर हुए.
जितेंद्र पर दर्ज पहले अपराध क्रमांक 128 में पुलिस ने जिसे शिकायतकर्ता बनाया है उसका नाम जितेंद्र कुमार सोनी है जो एफआईआर में खुद को ‘कैन-विज’ चिट फंड कंपनी का मालिक बताया है. उक्त शिकायतकर्ता जितेन्द्र सोनी आत्मज नंदू प्रसाद सोनी के ऊपर 2014 में सूरजपुर थाना में 420, 120B ,34 का अपराध दर्ज है एवं जिस चिटफंड कंपनी के विषय में एफआईआर में उल्लेख किया गया है वह भी फर्जी कंपनी है तथा छत्तीसगढ़ में उसका कोई भी पंजीयन नहीं है, इतना ही नहीं उक्त कंपनी के मालिक कन्हैयालाल गुलाटी एवं अन्य पर उत्तरप्रदेश के बरेली में अपराध क्रमांक 0012/2021 अंतर्गत धारा 420, 406 आईपीसी 1860 दर्ज है. स्पष्ट है शिकायतकर्ता एवं उसकी कंपनी के मालिक दोनो के विरुद्ध 420 का अपराध पंजीबद्ध है अतः उनकी विश्वसनीयता हाशिए पर तो है ही शेष जिन गंभीर धाराओं के तहत पत्रकार जितेंद्र पर अपराध दर्ज किया गया है उसका भी कोई पुख्ता साक्ष्य पुलिस के पास नहीं है. यदि कोई ठोस प्रमाण होता तो पुलिस उसे अवश्य सार्वजनिक करती.
दूसरा एफआईआर क्रमांक 0129 में शिकायतकर्ता प्रवीण कुमार अग्रवाल पिता श्री जोगीराम अग्रवाल है जिसे पत्रकारों के सामने सरगुजा एसपी ने दिनांक 08-04-2022 को ही रात्रि लगभग 9 बजे बुलवाकर शिकायत लिया है, उक्त एफआईआर में शिकायतकर्ता ने स्वयं स्वीकर किया है कि वह उसके भाई विनोद अग्रवाल उर्फ ‘मग्गू सेठ’ के साथ रहता है एवं उनके क्रशर में एक आदिवासी युवक की मौत हो गयी थी जिसका समाचार जितेंद्र जायसवाल ने चलाया था जिससे उसे क्षोभ कारित हुआ था विदित हो कि अभी हाल ही में 23-03-2022 को प्रवीण अग्रवाल एवं विनोद अग्रवाल उर्फ मग्गू के क्रशर में रायपुर से अजजा अध्यक्ष एवं प्रशासन की टीम जांच हेतु आयी थी जिसका समाचार पत्रकार जितेंद्र के द्वारा चलाया गया था एवं पुलिस प्रशासन के रवैय्ये पर गंभीर प्रश्न उठाए गए थे स्पष्ट संभावना है कि समाचार दबाने के एवज में वह पत्रकार को झूठे मामले में फंसा रहा है अतः दूसरा एफआईआर भी संदिग्ध प्रतीत होता है एवं दोनो एफआईआर प्रेस की आवाज दबाने हेतु पुलिस की दमनकारी नीति के तहत पूर्वाग्रह से दर्ज किया गया मालूम होता है.
सारे मामले की मूल में पंकज बेक कस्टोडियल डेथ का समाचार है, जब भी इस मामले में कोई समाचार चलाता है तो उस पत्रकार पर फर्जी एफआईआर दर्ज कर दिया जाता है उक्त घटना के दो प्रकार के पक्ष नज़र आ रहे हैं एक तरफ तो न्यायप्रिय लोग जितेंद्र की गिरफ्तारी पर नाराज़गी जता रहे हैं वहीं दूसरी ओर अपराधियों के समूह में इतना हर्ष व्याप्त है कि बकायदा सड़क पर ट्रक रोककर चाकू दिखाकर पैसे लूटने वाले कथित अपराधियों द्वारा पुलिस खुद का स्वागत करवा रही है, थाने के सामने ‘पुलिस जिंदाबाद एवं पत्रकार मुर्दाबाद’ के नारे लगाए जा रहे हैं.
दरसल जो लोग पत्रकार ‘मुर्दाबाद एवं पुलिस जिंदाबाद’ कर रहे हैं उनकी अशिक्षा एवं मानसिक दिवालिएपन पर तरस आती है, जिस पत्रकार का आज वो मुर्दाबाद कर रहे हैं आप भूलें नहीं कि बेकमती रजक की जमीन हड़पने वालों के विरुद्ध कार्यवाही कैसे हुई? कुन्नी रेप एटेम्पट मामलें में अभियुक्तों को जेल कैसे हुआ? एक आदिवासी व्यक्ति की संदिग्ध मौत क्रशर में हो जाने के मुद्दे को किसने उठाया? विभिन्न कस्टोडियल डेथ पर बेबाक रिपोर्टिंग किसने की? माखन एवं रामबिलास के न्याय के लिए कौन लड़ रहा है? अतः गरीब शोषित एवं पीड़ित के पक्ष में खड़े रहने के कारण हम जैसे लोग जितेंद्र जैसे सभी जनपक्षीय पत्रकारों का साथ देते हैं एवं किसी की भी निरंकुशता बर्दाश्त नहीं कि जाएगी.
व्यवस्था में कोई भी सर्वोपरि नहीं होना चाहिए पत्रकार भी नहीं ! मैं चुनौती देता हूँ कि पुलिस इस बात के पुख्ता प्रमाण सार्वजनिक करे कि जो आरोप उसने जितेंद्र पर लगाएं हैं वह सही है एवं शिकायत पत्र के सिवा अन्य कोई ठोस प्रमाण भी पुलिस के पास मौजूद हैं इसके बाद कोई भी हो यदि घटना में प्रथम दृष्टया अपराध करना प्रमाणित प्रतीत होगा तो उसका पक्ष हम तो क्या कोई भी कैसे लेगा? आज से एक महीने पहले मैंने लेख लिखकर स्पष्ट किया था कि “ब्लैकमेलिंग का समर्थन नहीं है”
मैं पुनः दोहराता हूँ पुलिस एक भी पुख्ता प्रमाण जितेन्द्र के विरुद्ध पेश कर दे जिसमें वह फिरौती मांग रहा हो या एफआईआर में जो आरोप लगाए गयें हैं वो प्रमाणित होता हो मैं इस मुद्दे पर एक लाइन भी नहीं लिखूंगा… और यदि पुलिस प्रमाणित नहीं कर सकती तो सभी एफआईआर रद्द करे…
अब यहां पर मैं जितेन्द्र के विरुद्ध हुए दोनो एफआईआर की कॉपी पोस्ट कर रहा हूँ (चित्र क्रमांक 1 तथा 2) आप पढ़ें और खुद फैसला लें कि जिन शिकायतकर्ताओं ने लिखित शिकायत की है क्या उसपर आपको यकीन है?
चित्र क्रमांक 3 तथा 4 में शिकायतकर्ता एवं उसकी कंपनी के विरुद्ध हुए एफआईआर की कॉपी को भी देखें, दोनो एफआईआर को पंजीबद्ध करने का समय अंतराल भी देखें और तय करें कि क्या यह सरगुजा पुलिस की दुर्भावना नहीं है? क्या आप या हम थाने जाते हैं तब इसी प्रकार फटाफट एफआईआर दर्ज हो जाता है? क्या एफआईआर होने पर आरोपियों की गिरफ्तारी एक घण्टे के भीतर हो जाती है?
क्या एक चिटफंड कंम्पनी को पक्षकार बनाकर सरगुजा पुलिस एक पत्रकार को प्रताड़ित नहीं कर रही है? रक़म दोगुनी करने वाले लोगों की धड़पकड़ करने के बजाय आखिर पुलिस उनकी पैरोकार क्यों बनी हुई है? तय आपको करना है कि जब अपराधियों के खेमें में जश्न का माहौल हो तो क्या यह पुलिस की सफलता है? क्या अपराधी पुलिस को गुलदस्ता देकर जश्न मनाएं तो यह पुलिस के लिए पीठ थपथपाने वाली बात है या शर्म की?