शा. दू. ब.महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय में 8 फरवरी को दो सत्र में रखा गया व्याख्यान

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होरी जैसवाल

रायपुर : शा. दू. ब.महिला स्नातकोत्तर (स्वशासी) महाविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ हिंदी -विभाग मे दिनांक 8 फरवरी को दो सत्र में व्याख्यान रखा गया। जिसमें प्रथम सत्र में डॉ. उर्मिला शुक्ला का व्याख्यान हुआ उनका विषय था “छत्तीसगढ़ी गद्य उद्भव एवं विकास”

1. छत्तीसगढ़ी भाषा में गद्य साहित्य का विकास बहुत बाद में हुआ. उसका कारण था प्रकाशन का अभाव, छत्तीसगढ़ी भाषा नहीं बनी थी और उसे महत्व नहीं दिया जाता था.

2. छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास करने में हीरालाल काव्योपाध्याय का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

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3. छत्तीसगढ़ी साहित्यकार केयूर भूषण की कहानी संग्रह “आंसू मां फीले अंचरा” मैथिलीशरण गुप्त की “यशोधरा”काव्य की झलक दिखती है

4. केयूर भूषण गांधीवादी विचारधारा से प्रभावित थे गांधीवादी आदर्श उनकी रचनाओं में झलकता था

5. छत्तीसगढ़ी लेखक श्यामलाल चतुर्वेदी की कहानी संग्रह “भोलवा भोलाराम बनिस” उत्कृष्ट कहानी है उसमें सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग
किया गया है.

6. नरेंद्र देव वर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा की रचनाओं का काल विभाजन कर इसे सरल बनाया.

7. उन्होंने अपने व्याख्यान में बताया कि मुंशी प्रेमचंद जी ने कहा है साहित्य कोई मनोरंजन की वस्तु नहीं है वरन साहित्य का कार्य समाज में व्याप्त कुरीतियां विसंगतियां, असमानताएं आदि को दूर करना है.

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8. छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध करने में “लोकाक्षर” पत्रिका का अत्यधिक योगदान रहा है जिसके संपादक नंदकिशोर तिवारी है.

9. छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रथम उपन्यास “हीरु की कहनी” को माना गया है.

10. छत्तीसगढ़ी उपन्यासों में रामेश्वर पांडे की चर्चित उपन्यास “तुम्हर जाईले गिया” बहुत प्रसिद्ध है जो छत्तीसगढ़ के मजदूरों द्वारा पलायन करने पर लिखा गया बाद में इसे हिंदी में “विपत्त” नाम से भी प्रकाशित किया गया है.

द्वितीय सत्र में व्याख्यान महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ किरण गजपाल के मार्गदर्शन में किया गया. हिंदी की विभागाध्यक्ष डॉक्टर सविता मिश्रा ने अतिथियों का स्वागत एवं विभागीय प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन एवं विशेषज्ञों का परिचय डॉ. कल्पना मिश्रा एवं मंजू कोचे ने प्रस्तुत किया. आभार प्रदर्शन चंद्र ज्योति श्रीवास्तव मैडम ने किया.

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द्वितीय सत्र में श्रीमती शकुंतला तरार का व्याख्यान हुआ उनके व्याख्यान का विषय था “सृजनशीलता और हल्बी काव्य का पाठ”

1. उन्होंने हल्बी में रचित अनेक रचनाओं पर प्रकाश डाला, जिसमें प्रमुख हैं–बलकैना, बस्तर की बेटी, बस्तर की लोककथाएं, चूरी, फुल कुमारी देवी इत्यादि उनकी रचनाएं हैं.
2. “छत्तीसगढ़ की बेटी”रचना में छत्तीसगढ़ की 36 वीरांगनाओं का चित्रण किया गया है जिसमें प्रमुख हैं– कौशल्या, शबरी, राजमोहिनी मिनीमाता, प्रफुल्ल कुमारी इत्यादि
3. उन्होंने कहा कविताओं में सच्चाई होती है, वह केवल मनोरंजन मात्र ना होकर सामाजिक समस्याओं को मुखरित करती हैं और कवि उनको अपने मन के भावों द्वारा कलम से कागज पर उतारता है
4. बस्तर की सामाजिक व्यवस्था पर कई कविताओं को लिखा गया है, उन्होंने बताया कि बस्तर नक्सली क्षेत्र के अंतर्गत आता है और वहां के लोग खासकर लड़कियां असुरक्षित हैं उस पर केंद्रित स्वरचित कविता का पाठ कर उनकी समस्याओं से अवगत कराया.
5. भाषा बदलने से तथ्य भी बदल जाता है
6. आदिवासी बच्चों को पकड़कर जबरदस्ती नक्सली बनाया जाता है इसी प्रकार छत्तीसगढ़ी लड़कों को पकड़कर फौजी बना दिया जाता है,उस पर उनकी स्वरचित कविता है जिसका पाठ उनके द्वारा किया गया.
7. आधारहीन सृजन नहीं किया जा सकता है सृजन इतिहास से प्रारंभ होते हुए आधुनिक तथ्यों पर आधारित होता है.
8. छत्तीसगढ़ी की अलग-अलग बोलियों और उनके रूपों पर प्रकाश डाला गया, छत्तीसगढ़ी की बोलियों में प्रमुख रूप से हल्बी, गोंडी,बस्तरिया, भतरी आदि हैं.

व्याख्यान के दौरान स्नातकोत्तर की समस्त छात्राएं एवं पीएचडी शोधार्थी उपस्थित रहे।

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