पैसों की कमी और कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि के चलते मूर्तिकारों का भविष्य अंधकारमय

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गुवाहाटी: बीते दो साल के दौरान कोविड-19 संकट के कारण असम में दुर्गा पूजा के लिए मूर्तियां बनाने वाले हतोत्साहित हैं। यहां पांडु क्षेत्र में काम करने वाले मूर्तिकार तापस पाल (67) पिछले दो साल की तरह इस साल के लिए भी ंिचतित हैं क्योंकि कच्चे माल की कीमतें बढ़ रही हैं और मजदूरों की किल्लत है। इसके साथ ही कई आयोजकों ने अपने खर्च में कटौती की है।

पाल ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘महामारी के कारण लागू लॉकडाउन के चलते पिछले दो वर्षों के दौरान हमें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पिछले साल प्रशासन ने दुर्गा प्रतिमाओं का आकार घटा दिया था जिससे हमारी आय पर प्रतिकूल असर पड़ा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘कच्चे माल- मिट्टी, घास, लकड़ी और कपड़े तथा गहनों की कीमतें भी महामारी के बाद से आसमान छू रही हैं और आयोजन समितियां अधिक पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं हैं।’’ शहर के पश्चिमी हिस्से में कुम्हारों की कॉलोनी में कारीगर अब भी रातभर जागकर देवी दुर्गा और अन्य देवताओं की मूर्तियां बना रहे हैं ताकि उन्हें समय पर पूरा किया जा सके और विभिन्न पंडालों में भेजा जा सके।

पाल के 37 वर्षीय बेटे कंचन ने कहा, ‘‘कुछ आयोजकों ने देर से आॅर्डर दिया है और हमें आखिरी वक्त में सामान खरीदना पड़ा जिससे हमारा लाभ कम हुआ है।’’पिता-पुत्र को इस साल 19 आॅर्डर प्राप्त हुए और महामारी से पहले के समय के मुकाबले इस साल उन्हें कम कारीगर मिले। तापस ने कहा कि पहले कुछ मूर्तियां एक-एक लाख में बिक जाती थीं लेकिन इस साल 50 हजार भी मिल जाएं तो उनका सौभाय होगा।

उन्होंने कहा कि पिछले महीने हुई बारिश के कारण भी उनकी समस्याएं बढ़ी हैं। प्रतिमाएं बनाने में मौसम की भूमिका भी अहम होती है क्योंकि मिट्टी पूरी तरह सूखने के बाद ही मूर्तिकार उन पर रंग चढ़ा सकते हैं। पास की एक कार्यशाला में काम कर रही शहर की एकमात्र महिला मूर्तिकार 32 वर्षीय दीपिका पाल ने कहा, ‘‘पारंपरिक रूप से परिवार की महिला सदस्य मूर्ति बनाने का काम नहीं करतीं लेकिन मेरे पिता की मृत्यु के बाद मां और बहनों को पालने के लिए मुझे यह काम करना पड़ा।’’

दीपिका अपने पति दिलीप दास के साथ कारखाना चलाती हैं। उन्होंने मूर्ति निर्माण कला अपने पिता से नहीं बल्कि पति और अन्य लोगों से सीखी। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल के दौरान इस समुदाय के लोगों की ‘‘कमर ही टूट गई’’ और इस साल भी मूर्तियों के बहुत कम आॅर्डर प्राप्त हुए हैं।

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