भोपाल। मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित कूनो नेशनल पार्क में एक और चीते की मौत हो गई है। दक्षिण अफ्रीका से लाए गए मादा चीता धीरा ने मंगलवार को दम तोड़ दिया। मध्य प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक जेएस चौहान ने उसकी मौत की पुष्टि की है।
धीरा का कूनो राष्ट्रीय उद्यान के अंदर एक अन्य चीता से लड़ाई हो गई थी जिसमें उसकी जान चली गई। दो माह के भीतर नामीबिया से लाए गए चीतों में यह तीसरी मौत है। इससे पार्क प्रबंधन पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। धीरा से पहले साशा और उदय की मौत हो चुकी है। पहले दोनों चीतों की मौत बीमारी की वजह से हुई थी। इस चीते की मौत की वजह आपसी संघर्ष है।
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प्रोजेक्ट चीता के तहत पहली खेप में नामीबिया से 8 चीतों को कूनो नेशनल पार्क लाया गया था। इसके बाद 18 फरवरी को दक्षिण अफ्रीका से 12 और चीते कूनो लाए गए थे। इनमें एक एक नर और दो मादा चीतों की मौत हो चुकी है। इस तरह कुल 20 चीतों में से 3 की मौत जाने पर अब 17 नामीबियाई चीते कूनो नेशनल पार्क में बचे है। हालांकि, पहली खेप में नामीबिया से आई सियाया ने हाल ही में 4 शावकों को जन्म दिया था। चार नवजात को मिलाकर कूनो में अब भी 21 चीते हैं।
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कूनो शिफ्ट होने के बाद तीन चीतों की हुई मौत प्रोजेक्ट चीता को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। साशा की मौत के बाद डॉक्टरों ने बताया था की कुछ और चीते भी साशा के समान बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें भी बचाना कठिन है। इसके बाद उदय की संदिग्ध मौत हुई। इसके पहले दो चीते बाड़े से बाहर इंसानी बस्तियों में घुस गए थे। जिन्हें ट्रेंकुलाइज कर जंगल में छोड़ा गया था।
हाल ही में चीता प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारी ने सनसनीखेज दावा किया था। अधिकारी ने कहा था कि राजनीति के चलते कूनो में क्षमता से अधिक चीते रखे गए। चीता प्रोजेक्ट से जुड़े वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के पूर्व डीन वाईवी झाला का कहना है कि हमें कूनो की क्षमता के बारे में पता था इसलिए हमने 4-5 चीतों को मुकंदरा भेजने की योजना बनाई थी लेकिन हमें इस बात का आभास नहीं था कि राजनीति के चलते यह योजना खटाई में पड़ जाएगी।
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वहीं कंजरवेशन साइंस एंड प्रैक्टिस नामक जर्नल में कहा गया है कि कूनो में 20 चीतों को रखे जाने से पहले पार्क की क्षमता का अनुमान नहीं लगाया गया। कूनो में प्रति सौ वर्ग किलोमीटर में तीन चीतों को रखे जाने के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा गया है कि चीतों की बसाहट की योजना में अधिक सावधानी बरती जानी चाहिए थी।
दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि प्रति सौ वर्ग किलोमीटर पर एक ही चीते की बसाहट होनी चाहिए। चीतों की अपनी एक टेरिटरी होती है और ऐसे में संभव है कि तीन चीते ही पूरे कूनो को अपनी टेरिटरी बना लें। जिस वजह से अन्य चीतों को अपनी टेरिटरी बनाने की जगह ही नहीं मिलेगी। नतीजतन चीते पार्क से बाहर निकल जाएंगे अथवा उनमें आपसी संघर्ष होता रहेगा। माना जा रहा है कि टेरिटरी को लेकर संघर्ष में ही मादा चीता धीरा की मौत हुई है।