होरी जैसवाल
रायपुर : छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद एवं शास दू ब महिला महाविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा साहित्य मनीषी डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र की स्मृति में कार्यक्रम रखा गया.. जिसमें डॉ आभा तिवारी की दो पुस्तकों डॉ बलदेव प्रसाद मिश्र तथा मेरे उर से आनंद निर्झरी झरती है का विमोचन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ सुशील त्रिवेदी ने इतिहास की बात कहीं कि किस प्रकार से बस्तर के सम्मेलन मे समस्त साहित्यकारों ने हिंदी के पाठ्यक्रमों की बात कहीं थी और साहित्य के विकास का मार्ग प्रशस्त किया था और उन्होंने बलदेव प्रसाद मिश्र की भाषा के एकीकरण पर जोर दिया और कहा कि लिखने से अधिक पढ़ने और सुनाने पर जोर देना चाहिए जिससे सांस्कृतिक एकता और भाषा दोनों उत्कृष्ट होगीकार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ किरण गजपाल ने की उन्होंने बलदेव प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन किया व इस आयोजन हेतु अपनी शुभकामनाएं प्रेषित की।
विशिष्ट अतिथि गिरीश पंकज ने कहा कि साहित्य लोक जागरण और मूल्यपरखता को बढ़ाने का कार्य करता है उन्होंने बताया कि जो धैर्य के साथ लिखा जाए वहीं साहित्य है जल्दबा मे लिखा गया साहित्य रिपोर्ट के समान है।
साहित्यकार शिवशंकर पटनायक ने अंतर्मन की अभिलाषा की बात कही और कहा कि कृतियों के माध्यम से काल वन्त हो जाता है
डॉ ओझा ने बलदेव प्रसाद मिश्र को सामाजिक वैज्ञानिक पुरुष कहा
डॉ आभा तिवारी ने अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया कि किस प्रकार वो कवि सम्मलेन मे अपने नाना के साथ जाती थी और विविध साहित्यकारों से भेट हुई थी।उन्होंने कहा कि हमें हमारी संस्कृति और विरासत पर गर्व होना चाहिए जैसा बलदेव प्रसाद को था मिश्र के रचनाओं से आज के युवा पीढियों को समस्या को सुलझाने और आगे बढ़ने की प्रेरणा दे मिलेगी।उन्होंने बताया कि बल्देवप्रसाद के शोधग्रंथ को पीएचडी के ग्रंथ से श्रेष्ठ मानकर डी लिट की उपाधि दी गई थी
हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ सविता मिश्रा ने बलदेव प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व के बारे मे बताया कि मिश्र बाहर से नारियल के समान कठोर और भीतर से मृदु भाषी थे प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक समान व्यवहार करते थे उन्होंने डॉ बलदेव प्रसाद मिश्रा की रचनाओं के संबंध में बताया कि उन्होंने राम शोध समीक्षात्मक ग्रंथ का सृजन किया एवं खय्याम की रुबाईयों का पद्यानुवाद कियाडॉ कल्पना मिश्रा ने साकेत संत के अध्ययन के पश्चात बलदेव प्रसाद मिश्र को राजा जनक के समान गृहस्थ होते हुए भी एक संत की भांति बताया।
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उनके व्यक्तिगत वन में अनुशासन और साहित्यनुराग पर प्रकाश डाला। उनकी रामकथा स्वयं प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद सुना करते थे यह बताया। स्वागत उद्बोधन नर्मदा प्रसाद नरम ने दिया मंच का सफल संचालन आशीष राज सिंघानिया ने किया। साथ ही महाविद्यालय के नृत्य संगीत विभाग व आईक्यूएसी द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के लिए देशभक्ति गीत और नृत्य भी प्रस्तुत किया गया।
आईक्यूएसी प्रभारी डॉ उषाकिरण अग्रवाल ने भारत की स्वतंत्रता के लिए दी गई कुर्बानियों के बारे में बताया डॉ स्वप्निल कर्महे ने नृत्य का निर्देशन किया। अतिथि प्राध्यापक पूजा झा और अभिषेक थवाईत के साथ छात्राओं ने मनमोहक प्रस्तुति दी धन्यवाद ज्ञापन डॉ आरती उपाध्याय ने दियाइस अवसर पर राधाबाई महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ अलका वास्तव, सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ पुष्पा तिवारी प्राध्यापक मंजू झा गीता रॉय, डॉ श्रद्धा गिरोलकर चंद्रज्योति वास्तव,डॉ मधु वास्तव डॉ रश्मि दुबे उपस्थित थे इस अवसर पर राहुल सिंह महेंद्र ठाकुर भी उपस्थित हुए। शोधार्थी अंजलीचिंकीलता बेनू, अंतिमा,चंचलरिंकी विनी ता उपस्थित रहे