नई दिल्ली : कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद रणदीप सुरजेवाला को उत्तर प्रदेश (UP) की कोर्ट से झटका लगा है। यूपी के बनारस की स्पेशल (MP-MLA) कोर्ट ने 23 साल पुराने एक मामले में गैर जमानती वारंट जारी किया है। इस मामले में अगली सुनवाई अब 9 जून को की जाएगी। कोर्ट ने इस मामले में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि हाईकोर्ट के आदेश पर आरोपी को न्याय हित में पहले ही लास्ट चांस दिया जा चुका है।
मामला साल 2000 का है। सुरजेवाला उस समय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। उन पर वाराणसी में संवासिनी कांड में कांग्रेस नेताओं के ऊपर लगे कथित झूठे आरोप के विरोध में हंगामा करने के लिए मामला दर्ज किया गया था। सुरजेवाला 21 अगस्त, 2000 को वाराणसी में आयोजित एक प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे थे, जिसमें एक सुरक्षा गृह की महिला कैदियों से संबंधित संवासिनी कांड में कांग्रेस नेताओं के कथित झूठे आरोप के खिलाफ प्रदर्शन किया था।
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सुरजेवाला के द्वारा किए जाने वाले प्रदर्शन के दौरान उनके समर्थकों के द्वारा कथित तौर पर संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, पथराव किया और लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोका। सुरजेवाला और अन्य के खिलाफ वाराणसी के कैंट थाने में आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। फिलहाल, इनके खिलाफ वाराणसी के MP-MLA कोर्ट में ट्रायल चल रहा है।
सुरजेवाला की तरफ से दलील दी गई है कि अदालत के पहले के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में उन्होंने याचिका दाखिल की है। उसके निस्तारण तक आरोप से मुक्त करने के प्रार्थना पत्र को दाखिल करने का समय दिया जाए। आरोपी को पहले हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर न्याय हित में अंतिम अवसर दिया जा चुका है, इसलिए आरोपी के प्रार्थना पत्र को स्वीकार करने का पर्याप्त आधार नहीं है। आरोपी का प्रार्थना पत्र निरस्त कर गैर जमानती वारंट जारी किया जाता है।
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सुरजेवाला के वकील का कहना है कि राज्यसभा सदस्य का नाम प्राथमिकी में नहीं है। गिरफ्तारी प्रपत्र और केस डायरी में भी उनका नाम नहीं है। इसके बावजूद उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया। इसी आधार पर प्रार्थना पत्र देकर मामले से उन्मोचित (छोड़ने) किए जाने का अनुरोध कोर्ट से किया गया था। कोर्ट में बचाव पक्ष की दलीलों का विरोध ADGC विनय कुमार सिंह ने किया।