नरसिंहपुर : द्वारका पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती (99) का मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित उनके आश्रम परिसर में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें उनकी तपोस्थली परमहंसी गंगा आश्रम, झोतेश्वर के परिसर में भू-समाधि दी गई. इस अवसर पर उनके हजारों अनुयायी मौजूद थे और उन्होंने उन्हें नम आंखों से विदाई दी.
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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल एवं फग्गन सिंह कुलस्ते, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ तथा दिग्विजय सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी सहित कई नेताओं ने झोतेश्वर स्थित आश्रम पहुंचकर उनके अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए. स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को इसी आश्रम में हृदयाघात के कारण निधन हो गया था. वह गुजरात स्थित द्वारका-शारदा पीठ एवं उत्तराखंड स्थित ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य थे.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि स्वामी जी सनातन धर्म के ध्वजवाहक और हमारी संस्कृति एवं जीवन मूल्यों के पोषक, योद्धा और संन्यासी थे. उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई भी लड़ी. उन्होंने लोगों को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी और गरीबों, जनजातियों, दलितों की सेवाओं के लिए प्रयास किये. वे विद्वान एवं अद्भुत सन्त थे. शिवराज सिंह चौहान ने ब्रम्हलीन स्वामी जी के चरणों में प्रणाम करते हुए कहा कि वे सनातन धर्म के सूर्य थे. उनके जाने से प्रदेश सूना हो गया.
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उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने हमें जो राह दिखाई है, हम सभी उस पर चलने का विनम्र प्रयास करेंगे. स्वरूपानंद सरस्वती धार्मिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर अमूमन बयान दिया करते थे और शिरडी के साईं बाबा को भक्तों द्वारा भगवान कहे जाने पर सवाल उठाया करते थे. आश्रम विज्ञप्ति के अनुसार शंकराचार्य ने सनातन धर्म, देश और समाज के लिए अतुल्य योगदान किया. उनसे करोड़ों भक्तों की आस्था जुड़ी हुई है.
इसमें कहा गया है कि वह स्वतन्त्रता सेनानी, रामसेतु रक्षक, गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करवाने वाले तथा रामजन्मभूमि के लिए लम्बा संघर्ष करने वाले, गौरक्षा आंदोलन के प्रथम सत्याग्रही एवं रामराज्य परिषद् के प्रथम अध्यक्ष थे और पाखंडवाद के प्रबल विरोधी थे. स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था. उनके बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था. उन्होंने नौ साल की उम्र में अपना घर छोड़कर धर्म यात्राएं प्रारंभ कर दी थी और 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए. शंकराचार्य के अनुयायियों ने कहा कि वह 1981 में शंकराचार्य बने और हाल ही में शंकराचार्य का 99वां जन्मदिन मनाया गया.