नई दिल्ली : दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी को लेकर 9 विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है। इन नेताओं में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं। चिट्ठी में लिखा है कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी यह दिखाती है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश से तानाशाही शासन में तब्दील हो गया है।
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दरअसल, शनिवार को राउज एवेन्यू कोर्ट में सिसोदिया की पेशी हुई थी। यहां उनकी जमानत याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन कोर्ट ने 10 मार्च तक के लिए जमानत पर फैसला सुरक्षित रख लिया और CBI को उनकी दो दिन की रिमांड और दे दी।
वहीँ बता दें …चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल, BRS चीफ के चंद्रशेखर राव, पंजाब के CM भगवंत मान, राजद नेता तेजस्वी यादव, नेशनल कॉन्फ्रेंस लीडर फारूक अब्दुल्ला, राकांपा चीफ शरद पवार, शिवसेना ठाकरे ग्रुप के चीफ उद्धव ठाकरे, सपा चीफ अखिलेश यादव।
यहाँ पढ़िए प्रधानमंत्री को लिखी गई पूरी चिट्ठी…
आदरणीय प्रधानमंत्रीजी, हमें भरोसा है कि आपको आज भी लगता है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का मनमाना इस्तेमाल यह दिखाता है कि हम एक लोकतंत्र से तानाशाही में तब्दील हो गए हैं। लंबी तलाश के बाद 26 फरवरी 2023 को मनीष सिसोदिया को CBI ने गिरफ्तार कर लिया। कथिततौर पर गड़बड़ी के आरोप में ये गिरफ्तारी की गई और वह भी बिना कोई सबूत दिखाए।
सिसोदियाजी के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह बेबुनियाद है। यह राजनीतिक षडयंत्र के तहत की गई कार्रवाई है। इस गिरफ्तारी ने पूरे देश की आवाम को गुस्से से भर दिया है। दुनियाभर में मनीष सिसोदिया दिल्ली स्कूल एजुकेशन में बदलाव के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी गिरफ्तारी को दुनियाभर में बदले की भावना से की गई राजनीतिक कार्रवाई के उदाहरण के तौर पर देखा जा रहा है। इससे वह बात भी पुष्ट हो रही है, जिसके बारे में पूरी दुनिया आशंकित है कि भाजपा के तानाशाही शासन के दौरान भारत के लोकतांत्रिक मूल्य खतरे में हैं।
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आपके शासन में 2014 से अब तक जितने राजनेताओं की गिरफ्तारी हुई, छापे मारे गए या पूछताछ हुई, उनमें ज्यादातर विपक्षी नेता हैं। मजेदार बात यह है कि उन विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों की जांच धीमी पड़ जाती है, जो बाद में भाजपा जॉइन कर लेते हैं। उदाहरण के तौर पर पूर्व कांग्रेस नेता और असम के मौजूदा सीएम हेमंत बिस्व सरमा। सीबीआई और ईडी ने 2014-2015 में शारदा चिटफंड घोटाले में उनके खिलाफ जांच शुरू की। हालांकि जबसे उन्होंने भाजपा जॉइन की, तब से केस आगे नहीं बढ़ा है।
इसी तरह नारदा स्टिंग ऑपरेशन केस में तृणमूल नेता शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय ED और CBI के रडार पर थे। विधानसभा चुनाव से पहले इन लोगों ने भाजपा जॉइन कर ली और तब से केस में कोई खास तरक्की नहीं हुई है। महाराष्ट्र के नारायण राणे केस को ले लीजिए। ऐसे कई उदाहरण हैं।
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2014 से विपक्षी दलों के नेताओं पर छापेमारी, उनके खिलाफ मामले और उनकी गिरफ्तारी में इजाफा हुआ है। चाहे वे राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव हों, शिवसेना के संजय राउत हों, समाजवादी पार्टी के आजम खान हों, NCP के नवाब मलिक और अनिल देशमुख हों या तृणमूल के कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी, इन सभी नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों ने जिस तरह की कार्रवाई की है, उससे संदेश पैदा होता है कि केंद्र सरकार के अंतर्गत काम कर रही हैं। ऐसे कई मामलों में केस या गिरफ्तारी तब हुई जब चुनाव होने वाले थे। इससे ये साफ पता चलता है कि जांच एंजेसियों के ये एक्शन पॉलिटिकली मोटिवेटिड थे।
जिस तरीके से विपक्ष के प्रमुख नेताओं को टारगेट किया जा रहा है, उससे इस आरोप को बल मिलता है कि आपकी सरकार जांच एजेंसियों की मदद लेकर विपक्ष काे खत्म करने की कोशिश कर रही है। जिन एंजेसियों का दुरुपयोग करने का आपकी सरकार पर आरोप लगता है उसमें ED अकेली नहीं है।
साफ है कि इन एजेंसियों की प्राथमिकताएं गलत हैं। एक इंटरनेशनल फॉरेंसिक फाइनेंशियल रिसर्च रिपोर्ट के बाद SBI और LIC ने एक कंपनी के चलते अपने शेयरों के मार्केट कैपिटलाइजेशन में 78 हजार करोड़ रु से ज्यादा गंवा दिए हैं। इन जांच एजेंसियों को इस कंपनी की आर्थिक विसंगतियों की जांच करने के लिए क्यों नहीं लगाया गया है, जबकि इस कंपनी में जनता का पैसा लगा है?