मनेंद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर: प्रदेश के एमसीबी जिले में रस भरे महुआ टपकने लगे है। लोग सुबह से ही उठकर जंगल में जाकर महुआ पेड़ के नीचे महुआ बिनना शुरू कर दिए हैं,यह सीजन आदिवासी ग्रामीणों के लिए त्यौहार की तरह है, इसी से उनके परिवार का पालन होता हैं। जिसके लिये पूरा परिवार सुबह सेे जंगल में पहुंच कर महुआ इकट्ठा करता है।
आदिवासी समुदाय में महुआ सीजन किसी पर्व से कम नही होता है। महुआ जब टपकना शुरू होता है तो रोजगार के लिए बाहर गये लोग भी वापस घर लौट आते हैं। इस तरह से यह सीजन बिछ़ड़े स्वजन के मेल मिलाप का भी कारण बनता है। आदिवासियों का पूरा कुनबा मिलकर महुआ फूल का संग्रहण करता है। सीजन में तो आदिवासियों के घरों में ताला लगा रहता है क्योंकि सुबह से ही परिवार के सभी लोग टोकरी लेकर महुआ बीनने खेत और जंगलों में निकल जाते हैं। ग्रामीण अपने पूरे परिवार के साथ महुआ बिनने जाते है फिर भी पूरा महुआ नहीं बिन पाते।
सुमेर राम बैगा बताते हैं कि सुबह चार बजे अपने लड़के और पड़ोसी के बच्चों को उठाता हूं। मेरे आस-पास के सभी लोग उठकर महुआ बीनने जाते है। सब जंगल जाते है। सब अपना खाना पीना वहीं पर बनाते हैं। इसके बाद हम लोग दोपहर तीन- चार बजे लौटते हैं हमको पैसे की कमी होती है तो हम दुकान में महुआ को लेकर जाते हैं।
महुआ संग्रहण का काम आदिवासी परिवारों का एक मुख्य काम हैं,जिसके माध्यम से उन्हें हर साल अच्छी खासी आमदनी हो जाती है। शासन भी आदिवासियों को प्रोत्साहित करने समय समय पर अनेकों योजनाएं लाता है,जिससे आदिवासियों का जीवन स्तर सुधर सके।