रायपुर: छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 90 सीटों के लिए होने जा रहे चुनाव के दौरान 13 सीटों पर होने वाले मुकाबले सबसे अधिक ध्यान आर्किषत करेंगे क्योंकि इनमें कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख नेता शामिल हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य की ये 13 विधानसभा सीटें इस प्रकार हैं :
1. पाटन — मुख्यमंत्री भूपेश बघेल वर्तमान में दुर्ग जिले के इस ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसकी सीमा राजधानी रायपुर से लगती है। 1993 से अब तक बघेल पाटन सीट से पांच बार चुने गए हैं। 2008 में वह अपने दूर के भतीजे, भाजपा के विजय बघेल से हार गए थे।
भाजपा ने एक बार फिर इस सीट से दुर्ग लोकसभा सीट से सांसद विजय बघेल को मैदान में उतारा है। बघेल कुर्मी जाति से हैं, जो राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग का एक प्रभावशाली समुदाय है। इस निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में कुर्मी आबादी है।
2. राजनांदगांव — राजनांदगांव जिले की यह शहरी सीट वर्तमान में भाजपा के उपाध्यक्ष और तीन बार के मुख्यमंत्री रमन ंिसह के पास है। 2018 के विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा था, जो भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गई थीं। वह ंिसह से 16,933 वोटों से हार गईं।
छह बार के विधायक रमन ंिसह ने 2008 से तीन बार यह सीट जीती है। भाजपा ने इस बार किसी भी नेता को अपने मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश नहीं किया है।
3. अंबिकापुर — उत्तरी छत्तीसगढ़ की यह आदिवासी बहुल सीट वर्तमान में उपमुख्यमंत्री टीएस ंिसह देव के पास है। पूर्व शाही परिवार के वंशज, तीन बार विधायक रहे ंिसह देव ने 2008 में पहली बार यह सीट जीती थी।
जैव विविधता से समृद्ध हसदेव-अरण्य क्षेत्र में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित कोयला खदानों के खिलाफ स्थानीय ग्रामीणों, मुख्य रूप से आदिवासियों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। ंिसहदेव प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सामने आए थे। इसके बाद राज्य ने केंद्र से हसदेव क्षेत्र के सभी कोयला ब्लॉक आवंटन रद्द करने का आग्रह किया। विरोध प्रदर्शन से इस सीट पर कांग्रेस की संभावनाओं पर असर पड़ सकता है।
4. कोंटा (अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित) — अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट दक्षिण छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में है। यह वर्तमान में उद्योग और आबकारी मंत्री कवासी लखमा के पास है, जो राज्य के सबसे प्रभावशाली आदिवासी नेताओं में से एक हैं। यहां ज्यादातर कांग्रेस, भाजपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया है। लखमा 1998 से लगातार पांच बार कोंटा से जीत चुके हैं।
5. कोंडागांव (अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित) — दक्षिण छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में आने वाली यह सीट वर्तमान में कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम के पास है।
मरकाम ने 2013 और 2018 में यहां से भाजपा की प्रमुख आदिवासी महिला नेता और पूर्व मंत्री लता उसेंडी को हराया था। उसेंडी को हाल ही में भाजपा का उपाध्यक्ष बनाया गया था। माना जाता है कि मरकाम के मुख्यमंत्री बघेल के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं, अत: उनको जुलाई में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।
6. रायपुर शहर दक्षिण — यह शहरी निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के प्रभावशाली नेता और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के पास है। सात बार के विधायक, अग्रवाल 1990 से इस सीट पर लगातार जीत रहे हैं। कांग्रेस के नेता कन्हैया अग्रवाल ने 2018 में अग्रवाल को कड़ी टक्कर दी थी। कन्हैया ने बृजमोहन के खिलाफ 60,093 वोट हासिल किए थे। इस चुनाव में भाजपा नेता को 77,589 वोट मिले थे।
7. दुर्ग ग्रामीण — दुर्ग जिले की इस ग्रामीण सीट पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के एक प्रमुख समुदाय साहू की बड़ी आबादी है। यह सीट वर्तमान में मंत्री ताम्रध्वज साहू के पास है, जो एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं। साहू के बारे में माना जाता है कि उन्होंने 2018 में साहू मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
2018 में पार्टी के सत्ता हासिल करने के बाद साहू मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे थे। साहू ने इससे पहले 2014 में दुर्ग लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी।
8. सक्ती — छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष चरणदास महंत कांग्रेस के एक अन्य प्रमुख ओबीसी नेता हैं जो इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। चार बार के विधायक महंत 2018 में पहली बार इस सीट से चुने गए। वह तीन बार के लोकसभा सांसद भी हैं और केंद्र की पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय राज्य मंत्री थे।
9. कवर्धा — कबीरधाम जिले की यह सीट वर्तमान में प्रमुख मुस्लिम नेता मोहम्मद अकबर के पास है। चार बार के विधायक अकबर ने 2018 में पहली बार इस सीट से चुनाव लड़ा और पूर्व विधायक भाजपा के अशोक साहू के खिलाफ 59,284 वोटों के बड़े अंतर से जीत हासिल की। अकबर बघेल सरकार में वन मंत्री हैं।
अकबर को इस बार इस सीट पर कुछ कठिनाई हो सकती है क्योंकि कवर्धा शहर में 2021 में हुई सांप्रदायिक ंिहसा के बाद ध्रुवीकरण होने की आशंका है।
10. साजा — बेमेतरा जिले का यह निर्वाचन क्षेत्र वर्तमान में राज्य के कृषि मंत्री और प्रभावशाली ब्राह्मण नेता रंिवद्र चौबे के पास है। वह सात बार से विधायक हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में इस साल की शुरुआत में साहू समुदाय के एक व्यक्ति की हत्या और उसके बाद जवाबी कार्रवाई में दूसरे संप्रदाय के दो लोगों की हत्या के चलते सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ। इसकी वजह से ध्रुवीकरण का असर साजा के साथ-साथ कवर्धा में भी चुनावी नतीजों पर पड़ सकता है।
11. आरंग (अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट) — रायपुर जिले के इस निर्वाचन क्षेत्र का वर्तमान में प्रतिनिधित्व शहरी प्रशासन मंत्री शिव कुमार डहरिया करते हैं, जो प्रभावशाली सतनामी संप्रदाय के नेता हैं। राज्य में अनुसूचित जाति की बड़ी आबादी इसी संप्रदाय की है।
डहरिया पहली बार 2003 में पलारी से और फिर 2008 में बिलाईगढ़ सीट से छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए चुने गए थे। इस बार उन्हें जोखिम का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सतनामी संप्रदाय के गुरु बालदास साहेब और उनके समर्थक हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हैं। बालदास ने अपने बेटे खुशवंत दास साहेब के लिए आरंग से टिकट मांगा है।
12. खरसिया — यह सीट उत्तरी छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में आती है, जहां अन्य पिछड़ा वर्ग के अघरिया समुदाय का दबदबा है। उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल वर्तमान में इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं जो कांग्रेस का गढ़ मानी जाती है।
झीरम घाटी नक्सली हमले में अपने पिता और प्रमुख कांग्रेस नेता नंदकुमार पटेल के मारे जाने के बाद उमेश पटेल 2013 में इस सीट से पहली बार चुने गए थे। नंदकुमार पटेल खरसिया से पांच बार निर्वाचित हुए थे।
13. जांजगीर-चांपा — अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी वाले इस क्षेत्र में हर चुनाव में विधायक बदलने की परंपरा है।
वरिष्ठ भाजपा नेता नारायण चंदेल इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह कांग्रेस के मोतीलाल देवांगन को हराकर इस सीट से तीन बार (1998, 2008 और 2018) चुने गए थे। देवांगन ने उन्हें 2003 और 2013 में हराया था।