Gay Marriage: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यह हमारे अधिकार में नहीं है, पढ़िए पूरी खबर…

0
178

नई दिल्ली: सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. SC कानून बनाने पर साफ कहा कि यह हमारे अधिकार में नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में चार फैसले हैं. कुछ सहमति के हैं और कुछ असहमति के. सीजेआई ने कहा, अदालत कानून नहीं बना सकता है, लेकिन कानून की व्याख्या कर सकता है. फैसले के दौरान सीजेआई और जस्टिस भट ने एक-दूसरे से असहमति जताई.

सीजेआई का कहना था कि निर्देशों का उद्देश्य कोई नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं है. वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं. CJI ने कहा, CARA विनियमन 5(3) अप्रत्यक्ष रूप से असामान्य यूनियनों के खिलाफ भेदभाव करता है. एक समलैंगिक व्यक्ति केवल व्यक्तिगत क्षमता में ही गोद ले सकता है. इसका प्रभाव समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को मजबूत करने पर पड़ता है. विवाहित जोड़ों को अविवाहित जोड़ों से अलग किया जा सकता है. उत्तरदाताओं ने यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड पर कोई डेटा नहीं रखा है कि केवल विवाहित जोड़े ही स्थिरता प्रदान कर सकते हैं.

CJI ने कहा कि मुझे जस्टिस रवींद्र भट्ट के फैसले से असहमति है. जस्टिस भट्ट के निर्णय के विपरीत मेरे फैसले में दिए गए निर्देशों के परिणामस्वरूप किसी संस्था का निर्माण नहीं होता है, बल्कि वे संविधान के भाग 3 के तहत मौलिक अधिकारों को प्रभावी बनाते हैं. मेरे भाई जस्टिस भट्ट भी स्वीकार करते हैं कि राज्य यानी शासन समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव कर रहा है. वो उनकी दुर्दशा को कम करने के लिए अनुच्छेद 32 के तहत शक्तियों का प्रयोग नहीं करता है.

सीजेआई के फैसले में बड़ी बातें…

– यह ध्यान दिया गया है कि विवाहित जोड़े से अलग होना प्रतिबंधात्मक है क्योंकि यह कानून द्वारा विनियमित है लेकिन अविवाहित जोड़े के लिए ऐसा नहीं है.
– घर की स्थिरता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिससे स्वस्थ कार्य जीवन संतुलन बनता है और स्थिर घर की कोई एक परिभाषा नहीं है और हमारे संविधान का बहुलवादी रूप विभिन्न प्रकार के संघों का अधिकार देता है.
– CARA विनियमन 5(3) असामान्य यूनियनों में भागीदारों के बीच भेदभाव करता है. यह गैर-विषमलैंगिक जोड़ों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और इस प्रकार एक अविवाहित विषमलैंगिक जोड़ा गोद ले सकता है, लेकिन समलैंगिक समुदाय के लिए ऐसा नहीं है.
– कानून अच्छे और बुरे पालन-पोषण के बारे में कोई धारणा नहीं बना सकता है और यह एक रूढ़ि को कायम रखता है कि केवल विषमलैंगिक ही अच्छे माता-पिता हो सकते हैं. इस प्रकार विनियमन को समलैंगिक समुदाय के लिए उल्लंघनकारी माना जाता है.
– सीजेआई ने कहा, निर्देशों का उद्देश्य नई सामाजिक संस्था बनाना नहीं है. यह अदालत आदेश के माध्यम से केवल एक समुदाय के लिए शासन नहीं बना रही है, बल्कि जीवन साथी चुनने के अधिकार को मान्यता दे रही है.

जस्टिस कौल ने क्या कहा…

– समलैंगिक विवाह पर जस्टिस एसके कौल ने अपने फैसला में कहा, मैं मोटे तौर पर सीजेआई से सहमत हूं. अदालत बहुसंख्यक नैतिकता की लोकप्रिय धारणा से नाराज नहीं हो सकती है. प्राचीन काल में समान लिंगों को प्यार और देखभाल को बढ़ावा देने वाले रिश्ते के रूप में मान्यता प्राप्त थी. कानून सिर्फ एक प्रकार के संघों को विनियमित करते हैं- वह है विषमलैंगिक संघ.
– कौल ने कहा, गैर विषमलैंगिक संघों को संरक्षित करना होगा. समानता सभी के लिए उपलब्ध होने के अधिकार की मांग करती है. विवाह से मिलने वाले अधिकार कानूनों के लौकिक मकड़जाल में फैले हुए हैं. गैर विषमलैंगिक और विषमलैंगिक संघों को एक ही सिक्के के दो पहलू माना जाना चाहिए.

जस्टिस भट्ट ने क्या कहा…

– सीजेआई द्वारा निकाले गए निष्कर्षों और निर्देशों से सहमत नहीं हूं. हम इस बात से सहमत हैं कि शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. स्पेशल मैरिज एक्ट असंवैधानिक नहीं है. विषमलैंगिक संबंधों के तहत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को SMA के तहत शादी करने का अधिकार है.

5 जजों की संविधान पीठ ने सुनाया फैसला

बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ ने 11 मई को सुनवाई पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले 18 समलैंगिक जोड़ों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में विवाह की कानूनी और सोशल स्टेटस के साथ अपने रिलेशनशिप को मान्यता देने की मांग की थी. याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, एसआर भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल थे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here