उदयपुर: पत्थर मार और कोड़ा मार होली के बारे में सभी ने सुना है लेकिन बारूद की होली की अनूठी परम्परा के बारे में कम ही लोग जानते हैं। यह परंपरा राजस्थान के उदयपुर जिले के मेनार गांव में पिछले करीब 400 साल से चली आ रही है। होली के बाद यह होली इस बार मंगलवार रात को खेली गई। जिसमें बंदूक ही नहीं, बल्कि तोप से गोले छोड़े गए।
गोला-बारूद से खेली जाने वाली इस होली को देखने उदयपुर ही नहीं बल्कि दूरदराज के लोग भी पहुंचते हैं। रंग-गुलाल के बीच गोलियों की गडग़ड़ाहट के साथ खेली जाने वाली होली जश्न के साथ मनाई गई। यहां के बुजुर्ग बताते हैं मेनार में बारूद की होली खेलने की परम्परा पिछले चार सौ सालों से चली आ रही है। जब मुगलों की सेना मेवाड़ पर हमला करते हुए यहां तक पहुंची तो मेनार के रणबांकुरों ने ऐसा युद्ध किया कि मुगल सेना के पांव उखड़ गए और उसे पीछे हटना पड़ा।
जिसके बाद मुगल सेना ने मेवाड़ की ओर कभी आंख उठाकर नहीं देखा। उसी परिदृश्य की याद को ताजा करने के लिए यहां बारूद की होली खेली जाती रही है। उसी परि²श्य की तर्ज पर मेनार के मुख्य चौक पर अलग-अलग रास्तों से सेना की वेशभूषा में स्थानीय ग्रामीण हाथों में तलवार और बंदूक थामे आते हैं। उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर मेनार गांव में होली के बाद तलवारों को खनकाते हुए बंदूक और तोप से छोड़े गोलों की गडग़ड़ाहट के बीच युद्ध जैसा ²श्य जीवंत हो उठता है।
उसी परम्परा के तहत मंगलवार रात भी तोप ने कई बार आग उगली, बंदूकों से गोलियों के धमाके कई घंटों तक होते रहे। रण में योद्धा की भांति यहां के स्थानीय लोग शौर्य का परिचय देते हुए होली खेलते रहे। इस गांव के विदेशों में रहने वाले युवा भी होली में भाग लेने मेनार अवश्य आते हैं।
मंगलवार रात 9 बजे बाद ग्रामीण पूर्व रजवाड़े के सैनिकों की पोशाक धारण करते हुए गांव की चौक पर पहुंचते हैं। यहां अलग-अलग पांच दल बनते हैं जो आपस में ललकारते हुए बंदूक-तलवारों को लहराते हुए खास नृत्य करते हैं। बीच-बीच में बंदूकों से गोलियां दागते रहते हैं और तोप से गोले छोड़े जाते हैं।
तोपों और बंदूकों की गर्जना इतनी तेज होती है कि मेनार से पांच से दस किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है।मेनार गांव में बंदूकों, पटाखों व तोपों की गर्जना के साथ होली खेलने का जश्न आधी रात तक चलता रहता है। साथ ही पटाखों के धमाकों से ओंकारेश्वर चौक दहला हुआ रहता है।
इस होली में केवल हिन्दू परिवार के सदस्य ही नहीं, बल्कि जैन समुदाय के लोग भी भाग लेते हैं। होली के बाद जब बारूद की होली खेली जाती है तो ग्रामीण पूरे मेनार को रोशनी से उसी तरह सजाते हैं, जैसे दीपावली पर्व मनाया जा रहा हो। ओंकारेश्वर चौक दूधिया रोशनी से जगमगाया जाता है।