Bollywood: मिलेनियम के खलनायक, प्राण हिन्दी फ़िल्मों के प्रमुख चरित्र अभिनेता थे

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प्राण हिन्दी फ़िल्मों के प्रमुख चरित्र अभिनेता थे । कई बार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार तथा बंगाली फ़िल्म जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन अवार्ड्स जीतने वाले प्राण ने हिन्दी सिनेमा में 1940 से 1990 के दशक तक दमदार खलनायक और नायक का अभिनय किया। उन्होंने 1940 से 1947 तक नायक के रूप में फ़िल्मों में अभिनय किया।

उन्होंने 350 से अधिक फ़िल्मों में काम किया। उन्होंने खानदान (1942), पिलपिली साहेब (1954) और हलाकू (1956) में मुख्य अभिनेता की भूमिका निभायी। उनका सर्वश्रेष्ठ अभिनय मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960), उपकार (1967), शहीद (1965), आँसू बन गये फूल (1969), जॉनी मेरा नाम (1970), विक्टोरिया नम्बर २०३ (1972), बे-ईमान (1972), ज़ंजीर (1973), डॉन (1978) और दुनिया (1984) किया था।
प्राण ने अपने कैरियर के दौरान विभिन्न पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किये। उन्होंने 1967, 1969 और 1972 में फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार और 1997 में फ़िल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड जीता। उन्हें 2000 में स्टारडस्ट द्वारा ‘मिलेनियम के खलनायक’ द्वारा पुरस्कृत किया गया। 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया और भारतीय सिनेमा में योगदान के लिये 2013 में दादा साहब फाल्के सम्मान से नवाजा गया। 2010 में सीएनएन की सर्वश्रेष्ठ 25 सर्वकालिक एशियाई अभिनेताओं में चुना गया।

12 फ़रवरी 1920 को दिल्ली में पैदा हुये । प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकन्द एक सरकारी ठेकेदार थे, जो सड़क और पुल का निर्माण करते थे। देहरादून के पास कलसी पुल उनका ही बनाया हुआ है। अपने काम के सिलसिले में इधर-उधर रहने वाले लाला केवल कृष्ण सिकन्द के बेटे प्राण की शिक्षा कपूरथला, उन्नाव, मेरठ, देहरादून और रामपुर में हुई।

बतौर फोटोग्राफर लाहौर में अपना कैरियर शुरु करने वाले प्राण को 1940 में ‘यमला जट’ में पहली बार काम करने का अवसर मिला। उसके बाद तो प्राण ने फिर पलट कर नहीं देखा।
1968 में उपकार, 1970 आँसू बन गये फूल और 1973 में प्राण को बेईमान फ़िल्म में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिये फ़िल्म फेयर अवार्ड दिया गया।

1945 में शुक्ला से विवाहित प्राण बेटे अरविन्द, सुनील और एक बेटी पिंकी के साथ मुम्बई आ गये। आज की तारीख में उनके परिवार में 5 पोते-पोतियाँ और 2 पड़पोते भी शामिल हैं। खेलों के प्रति प्राण का प्रेम भी जगजाहिर है। 50 के दशक में उनकी अपनी फुटबॉल टीम ‘डायनॉमोस फुटबाल क्लब’ बहुचर्चित रहा है।.

इस महान कलाकार ने 12 जुलाई 2013 को मुम्बई के लीलावती अस्पताल में अन्तिम साँस ली। उल्लेखनीय बात यह भी है कि उनके जन्म और मृत्यु की तिथि की संख्या एक ही थी

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