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राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार दिये जाने के खिलाफ दायर याचिका का केंद्र सरकार ने समर्थन किया…

नई दिल्ली. केंद्र सरकार ने चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार दिये जाने की घोषणाओं की प्रथा के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका का पूर्ण समर्थन करते हुए बुधवार को उच्चतम न्यायालय में कहा कि मुफ्त उपहारों का वितरण (देश को) निस्संदेह ‘भविष्य की आर्थिक आपदा’ की राह पर धकेलता है. चीफ जस्टिस एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्र सरकार का ताजा रुख इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे पहले उसने मुफ्त उपहार के मुद्दे से चुनाव आयोग द्वारा निपटे जाने पर जोर दिया था.

हालांकि, आयोग ने 26 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान सरकार पर जिम्मेदारी डाल दी थी. पीठ ने बुधवार को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक सहित सभी हितधारकों से चुनावों के दौरान मुफ्त में दिए जाने वाले उपहारों के मुद्दे पर विचार करने और इससे निपटने के लिए “रचनात्मक सुझाव” देने को कहा. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार जनहित याचिका का समर्थन करती है. मेहता ने कहा, ‘इस तरह के लोकलुभावन वादों का मतदाताओं पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

इस तरह के मुफ्त उपहारों का वितरण निस्संदेह न केवल भविष्य में आर्थिक आपदा का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि मतदाता भी अपने मताधिकारों का इस्तेमाल विवेकपूर्ण निर्णय के लिए नहीं कर पाते हैं.’ मेहता ने कहा कि एक आम आदमी इस तरह के मुफ्त उपहारों को स्वीकार करते हुए कभी महसूस नहीं करेगा कि ‘उसकी दाहिनी जेब को जो कुछ मिल रहा है उसे बाद में उसकी बाईं जेब से निकाल लिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को न केवल लोकतंत्र की रक्षा के लिए, बल्कि देश के आर्थिक अस्तित्व की रक्षा के लिए भी मुफ्त उपहार संस्कृति को फलने-फूलने से रोकना चाहिए. हालांकि, आयोग के वकील ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले इस पर बाध्यकारी हैं और इसलिए वह मुफ्त उपहार के मुद्दे पर कार्रवाई नहीं कर सकता है. शीर्ष अदालत ने वकील अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका की आगे की सुनवाई के लिए बृहस्पतिवार की तारीख मुकर्रर की और कहा कि सभी हितधारकों को इस मुद्दे पर सोचना चाहिए और सुझाव देना चाहिए, ताकि यह ‘गंभीर’ मामले से निपटने के लिए एक निकाय का गठन कर सके.

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